कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंति आज, जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने दी श्रद्धांजलि

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की आज जयंति है। जिसे लेकर जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख चार स्तम्भो में से एक थे. अर्थात वे साहित्य के महत्वपूर्ण छायावादी कवि थे। वे एक लेखक, कहानीकार, कवि, उपन्यासकार, निबंधकार एवं सम्पादक थे. परंतु वे अपनी कविताओं के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुए. उन्होंने कई रेखाचित्र भी बनाए. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई काव्य का जनक माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1899 को बंगाल की महिषादल रियासत , जिला मेदिनीपुर में हुआ। उनके पिता पंडित रामसहाय  मूल रूप से गांव गढकोला, जिला उन्नाव, उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे और महिषादल, बंगाल में सिपाही की नौकरी करते थे। तीन वर्ष की अवस्था में उनकी मां की मृत्यु हो गयी और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल गांव से बंगाली माध्यम में हुई। यही से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की।  इसके बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया। कुछ समय पश्चात वे अपने पैतृक गांव गढकोला, उन्नाव आ गए। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में निराला का विवाह मनोहरा देवी से हो गया। उनकी पत्नी की प्रेरणा से ही वे हिन्दी मे कविताएं लिखने लगे।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अनेक कविताओं, निबंध, उपन्यास एवं कहानी की रचनाएं की। 1920 में उनकी पहली कविता ‘जन्मभूमि’ उस समय की प्रभा नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। फिर 1923 में पहला कविता संग्रह ‘अनामिका’ और पहला निबंध ‘बंग भाषा का उच्चारण’ मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ। निराला जी हिंदी साहित्य में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। उन्होंने अपने समकालीन कवियों से अलग कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया। उनकी कविताओं में विषयो की विविधता और नवीन प्रयोगों की बहुलता है. उनके कविताओं में श्रृंगार, रहस्यवाद, राष्ट्र प्रेम, प्रकृति प्रेम, वर्ण भेद के विरुद्ध विद्रोह, शोषितों और गरीबों के प्रति सहानुभूति तथा पाखण्ड व प्रदर्शन के लिए व्यंग्य उनके काव्य की विशेषता रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली को प्रधानता दी। उनकी कविताओं की भाषा, शैली में पाये जाने वाला संगितात्मकता और ओज उनके काव्य की प्रमुख विशेषता रहा है।

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