NEWSPR डेस्क। होली से पूर्व रात को होलिका दहन की परंपरा है। होलिका दहन भक्त प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को हिरण्यकश्यप ने होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की थी और इस दौरान होलिका खुद ही जल कर खत्म हो गई थी। लेकिन ये कम ही लोग जानते है कि इसकी शुरूआत कहां से हुई थी।
बताया जाता है कि पूर्णिया जिला के धर्म नगरी सिकरीगढ़ धरहरा में देव भूमि हरि विष्णु स्थल स्थित है। यही वह जगह है जहां से होली की शुरुआत हुई थी। नरसिंह अवतार भगवान विष्णु ने जिस खंभे से अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए अवतरित हुए थे वह खंभा अभी भी मौजूद है।
हर साल की भांति इस साल भी बड़ी धूमधाम से होलिका दहन मनाया जा रहा है। होलिका दहन समारोह में दूर-दराज से लाखों लोग देखने आते हैं। इस अवसर पर कई तरह के विशेष कार्यक्रम होते हैं। आतिशबाजी के साथ होलिका दहन होती है। होलिका दहन को छोटी होली भी कहा जाता है। वहीं इसको लेकर स्थानीय प्रशासन द्वारा भारी भीड़ को देखते हुए फोर्स की व्यवस्था की गई है। सीसीटीवी कैमरे के नजरों से कोई बच नहीं सकेंगे। सात टावर लगाए गए हैं जिससे हर एक व्यक्ति पर फोर्स की नजर रहेगी। मूर्तिकारों की माने तो बांस बत्ती के द्वारा 40 फीट की होलीका की मूर्ति बनाई गई है। जिसमें 15 से 20 दिनों की समय 20 मजदूर द्वारा रोज काम किया जाता है।
पूर्णिया से पारस सोना की रिपोर्ट