किशनगंज के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर के भी दर्शन करेंगे अमित शाह, जानिए क्या है इस मंदिर की मान्यता

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपने दो दिवसीय सीमांचल दौरे के दौरान किशनगंज के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर लाइन बूढ़ी काली मंदिर में भी जाएंगे। ऐसी आस्था है कि इस मंदिर में माँ काली की आराधना से विशेष मनोरथ सफल होते हैं। 24 सितंबर को वे इस मंदिर में आराधना के लिए जाएंगे। लोगों में ऐसी धारणा है कि विशेष मनोरथ को सिद्ध करना हो तो बूढ़ी काली मंदिर की माँ काली की शरण मे आना ही होगा। मूर्ति दान के लिए भक्तों को कई वर्षों का इंतजार करना पड़ता है।

अगले 25 वर्षों तक मूर्ति दान की बुकिंग हो चुकी है। अगर आज कोई मूर्ति दान की इच्छा रखता है तो उसे 2047 साल तक प्रतीक्षा करनी होगी। मंदिर भवन में इसके स्थापित होने की तिथि भले ही सन 1902 अंकित है किंतु यह मंदिर उससे भी काफी पुराना बताया जा रहा है। 1902 के सर्वे में इस मंदिर के मौजूद होने की पुष्टि की गई है जिसका मतलब है कि इसकी स्थापना 1902 से पूर्व हुई थी। लगभग 250 साल पूर्व नवाब असद रजा ने इस मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान में दी थी।

असद रजा इस क्षेत्र में पगला राजा के नाम से विख्यात हैं। किशनगंज शहर के लाइन मोहल्ला में स्थित माँ बुढ़ी काली के इस प्राचीन मंदिर पर लोगों की अटूट श्रद्धा है और विश्वास वर्षों वर्ष से बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर सिद्ध है और इसमें अनंत शक्ति विद्यमान है। बूढ़ी काली मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने पर माँ काली भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। मंदिर के सिद्ध होने और शक्ति के विद्यमान होने के विश्वास के पीछे कई कहानियां भी प्रचलित है।

इस मंदिर के प्रति भक्तों में इतनी श्रद्धा और विश्वास है कि यहां मूर्ति दान की होड़ लगी रहती है। मूर्ति दान के लिए भक्तों को कई वर्षों का इंतजार करना पड़ता है। अगले 21 वर्षों तक मूर्ति दान की बुकिंग हो चुकी है। अगर आज कोई मूर्ति दान की इच्छा रखता है तो उसे 21 साल तक प्रतीक्षा करनी होगी। बूढ़ी काली मंदिर में हर वर्ष कार्तिक महीने की अमावस्या को भव्य रूप में निशि पूजा होती है जिसमे सुदूर क्षेत्रों से बड़ी संख्या में भक्त इस निशि पूजा में शामिल होते हैं।

वर्तमान पुजारी मलय मुखर्जी के पूर्वजों द्वारा मंदिर में कई पीढ़ियों से पूजा करने की परंपरा कायम है। यहां बलि भी दी जाती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त माँ काली की प्रतिमा के समक्ष स्थापित बलि वेदी में माँ काली को बलि अर्पित करते हैं। मंदिर भवन में इसके स्थापित होने की तिथि भले ही सन 1902 अंकित है किंतु यह मंदिर उससे भी काफी पुराना बताया जा रहा है। 1902 के सर्वे में इस मंदिर के मौजूद होने की पुष्टि की गई है जिसका मतलब है कि इसकी स्थापना 1902 से पूर्व हुई थी।

बताया जाता है कि लगभग 250 साल पूर्व नवाब असद रजा ने इस मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान में दी थी। असद रजा इस क्षेत्र में पगला राजा के नाम से विख्यात हैं। असद रजा द्वारा मंदिर के लिए जमीन के दान करने के पीछे भी कई तरह के किस्से यहां प्रचलित हैं। बूढ़ी काली मंदिर में आराधना के बाद गृहमंत्री का संभावित कार्यक्रम जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर टेढ़ागाछ प्रखंड में है। जहां नेपाल बॉर्डर है और गृहमंत्री वहां की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेंगे।

किशनगंज से शबनम खान की रिपोर्ट

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