NEWSPR डेस्क। आज नागपंचमी का त्योहार है। नाग पंचमी पर नागों की पूजा की जाती है। सावन के महीने मे पड़ने वाला यह त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती को अत्यंत ही प्रिय होता है। इसके साथ सर्प महादेव के गले की शोभा है और यह देव के देव महादेव को बहुत प्रिय है। नाग पंचमी पर शिवजी के साथ सांपों को भी पूजा जाता है। मान्यता है जो भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा करता है उसकी कुंडली में अगर कालसर्प या पितृ दोष है तो वह खत्म हो जाता है।
नाग पंचमी से जुडी कुछ कथाएं व मान्यताएँ
1. हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता यह है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, परन्तु उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, जिनका ताल्लुक नाग वंश से था, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया।
2. पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं — दिव्य और भौम । दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं। इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है। वे अगर कुपित हो जाएँ तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं। इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है। परन्तु जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है।
3. अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक — इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है। इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। अनन्त और कुलिक — ब्राह्मण; वासुकि और शंखपाल — क्षत्रिय; तक्षक और महापदम — वैश्य; व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है।
4. पौराणिक कथानुसार जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे; उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।
नाग पंचमी का महत्व
सर्प की छवि आम लोगों के बीच हमेशा से बुरी रही है लेकिन सनातन धर्म में सर्प को पूजनीय माना गया है। सृष्टि के संचालक और पालनकर्ता भगवान श्री हरि विष्णु भी शेषनाग पर ही विराजमान हैं जो कि एक सर्प का ही अवतार हैं।
सर्प का जिक्र विष्णु पुराण में भी मिलता है जहां शेषनाग की चर्चा है। वहीं शिव पुराण में भी वासुकि नामक सर्प की चर्चा है जिसे भगवान शिव गले में धारण करते हैं। यहाँ तक कि भगवद्गीता में नागों के नौ प्रकार का जिक्र है जिनकी पूजा करने को कहा गया है।
श्लोक :
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ।।
अर्थात : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं। इससे सर्प भय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती।
इसके अलावा, नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ अन्य सभी जीवों के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए, उनके संवर्धन के लिए और साथ ही साथ उनके संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरणा देता है। प्रमुख नागों का उल्लेख देवी भागवत में किया गया है। कहा जाता है कि पुराने समय में ऋषि-मुनियों ने नागों की पूजा इत्यादि करने के लिए अनेकों व्रत-पूजन का विधान बताया है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और फिर उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है।
मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन जो भी जातक नाग देवता के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा व रुद्राभिषेक करते हैं, उसके जीवन से कालसर्प दोष खत्म होता है और साथ ही साथ राहु और केतु की अशुभता भी दूर होती है।
इस दिन सर्पों को स्नान कराने, व उसकी पूजा करने से जातकों को अक्षय यानी कि कभी न खत्म होने वाले पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन नागों की पूजा करने वाले जातकों के जीवन से सर्प-दंश का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा इस दिन घर के मुख्य दरवाजे पर यदि सर्प का चित्र बनाया जाये तो उस घर पर नाग देवता की कृपा होती है और उस घर के सदस्यों के सारे दुख दूर हो जाते हैं।
नाग पंचमी का ज्योतिषीय महत्व
नाग पंचमी का त्यौहार नागों की पूजा का दिन माना जाता है। यह श्रावण मास में मनाया जाता है जो कि भगवान शंकर का प्रिया महीना है और शंकर जी के गले में नाग का वास होता है इसलिए विशेष रूप से नागों की पूजा स्थित प्रभावशाली होती है।
ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष नाग दोष या शनि राहु शापित दोष होता है उस की शांति के लिए नाग पंचमी का दिन सर्वाधिक उपयुक्त होता है। इस दिन रुद्राभिषेक कराने और भगवान शिव की पूजा करने तथा उपरोक्त दोषों की शांति कराने से लाभ मिलता है।
यदि कुंडली में राहु केतु की दशा चल रही है तो भी नाग पंचमी की पूजा से लाभ मिलता है।
जिन लोगों का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में होता है उन्हें नाग पंचमी की पूजा विशेष फलदाई होती है। अपना जन्म नक्षत्र जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव पीड़ित हो या संतान संबंधित समस्या हो अथवा संतान के भाव में सर्प दोष निर्मित हो रहा हो तो नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करनी चाहिए।