निश्छल भाव के थे शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पुण्यतिथि पर विशेष — मुरली मनोहर श्रीवास्तव

Patna Desk

 

 

NEWSPR DESK – मुझे याद है, शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के पास महीने में दो चार बार डुमरांव से मिलने के लिए वाराणसी जरुर जाया करता था। वो इतने निश्छल भाव से मिलते थे कि उन्हें शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। संगीत साधक उस महान विभूति से मेरा जब भी मिलना होता था,हमेशा सबक होता था। जाति-धर्म से परे उस्ताद के एक-एक शब्द आज भी मेरे कानों में गुंजते हैं और ये भी कहते थे…मेरी मिट्टी आया है, मेरा घरवईया आया….आहा..हा…और उनकी आंखें छलक जाती थीं, गले से लगा लेते थे। उनके इस आत्मीयता से मैं भी रो पड़ता था। उनकी याद आज भी बहुत आती है लेकिन अब वो सिर्फ यादों में बसकर रह गए हैं। उस्ताद की चर्चाएं पूरी दुनिया में होती थी, मगर अपनी जन्मस्थली बक्सर जिले के डुमरांव में वो अपनी पहचान के मोहताज थे। वर्ष 1979 की बात है, तब मैं बहुत छोटा था। मेरे घर पर ही भोजपुरी फिल्म ‘बाजे शहनाई हमार अंगना’ की पूरी यूनिट आयी हुई थी। मेरे पिताजी डॉ.शशि भूषण श्रीवास्तव जी उस्ताद को फिल्म की मुहूर्त के लिए लेकर आए हुए थे। उस वक्त भले ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मगर अब याद आता है कि उनसे मिलने वाले लोगों का तांता लगा रहता था। उस वक्त वो डुमरांव राज के बांके बिहारी मंदिर के अहाते में घंटों जाकर बैठ जाते थे, अपने पुराने दिनों को यादकर गमगीन हो जाते थे। कहते थे कि कभी इसी बांके बिहारी मंदिर में अपने अब्बा पैगंबर बख्श के साथ शहनाई वादन किया करता था।

*सौतेले भाई से था बेहद प्यार*

कमरुद्दीन बहुत कम उम्र के थे तभी मां का निधन हो गया। उनके पिता पैगंबर बख्श मियां की दूसरी शादी हुई तो उनकी दूसरी पत्नी अपने साथ एक बच्चे को लेकर आयीं जिनका नाम पंचकौड़ी मियां था। कमरुद्दीन उनसे भी बहुत प्यार करते थे। बाद में कमरुद्दीन और उनके बड़े भाई शमसुद्दीन अपने मामू अली बख्श के शागीर्द बनकर डुमरांव से वाराणसी चले गए। मगर पंचकौड़ी मियां डुमरांव में ही ताउम्र शहनाई वादन करते रहे। इनलोगों को अपने भाईयों में इतना लगाव था कि एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थकते थे। डुमरांव से वाराणसी गए कमरुद्दीन ही आगे चलकर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बन गए। पंचकौड़ी मियां…फिल्म गुंज उठी शहनाई के गीत …दिल का खिलौना हाय टूट गया….को खूब बजाते थे और कहते थे बिस्मिल्लाह भाई साहब ने इस गीत को धून देकर इतिहास रच दिया।

डुमरांव में संगीत विवि खोलने का मामला अधर में-

वर्ष 2013 में हमने पटना के एक कार्यक्रम में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय खोलने का संकल्प लिया। इस संकल्प को बिहार सरकार ने वर्ष 2020 में पूरा किया और डुमरांव में बिस्मिल्लाह खां संगीत एवं कला विश्वविद्यालय खोलने की स्वीकृति मिल गई। वैसे तो विवि का अस्थाई संचालन डुमरांव स्थित राज हाई स्कूल के रिक्त भवन में विवि खोले जाने का रास्ता प्रशस्त किया गया। परंतु अब तक इस स्वीकृत योजना पर पुख्ता काम नही किया गया है। कला-संस्कृति विभाग द्वारा अगस्त 2003 एवं फरवरी 2024 में पत्र के माध्यम से जिला प्रशासन को पांच एकड़ भूमि तलाशन का निर्देश दिया गया था, जो आजतक दुविधा में है। डुमरांव हरियाणा फार्म 431.10 एकड़ का एक बड़ा भू-भाग है, जिसमें 200 एकड़ में बीएमपी-4, 20 एकड़ में डुमरांव अनुमंडल एवं अस्पताल है वहीं लगभग 200 एकड़ भूमि अभी भी इसमें हैं, उसमें आसानी से शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय खोलने के लिए भूमि उपलब्ध हो सकती है, जो काफी शांत माहौल वाला इलाका भी है। इसके अलावे डुमरांव में सरकारी भूमि बड़े पैमाने पर उपलब्ध है। सरकार के संबंधित विभाग द्वारा इसके लिए पहलकर, कारगर कदम उठाया जाना चाहिए।

डुमरांव के लाल-

21 मार्च 1916 को डुमरांव के ठठेरी बाजार के किराए के मकान में जन्में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने पूरी दुनिया को अपनी शहनाई से मुरीद बनाया। मगर उनका वाराणसी और डुमरांव से जो लगाव था वो पूरी दुनिया में कहीं नहीं था। उनकी जीवनी (शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां) जब मैं लिख रहा था तो उनके कई अनछूए पहलूओं से अवगत होने का मौका मिला। अफसोस इस बात की होती है जिस उस्ताद ने डुमरांव को भारत रत्न दिलाया आज उनकी यादों को संजोने के नाम पर डुमरांव में अभी भी पुख्ता इंतजामात नजर नहीं आते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके नाम पर राजकीय समारोह के आयोजन के साथ संगीत विवि बनाए जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी, अब देखना है कि आखिर कब तक विवि को मूर्तरुप में देखने को मिलता है।

 

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