NEWSPR डेस्क। प्रधानमंत्री ने स्वामी आत्मस्थानानन्द के साथ बिताए समय को याद करते हुए स्वामी आत्मस्थानानन्द को श्रद्धांजलि अर्पित की। जिसके बाद कहा कि ‘यह आयोजन कई भावनाओं और यादों से ओतप्रोत है। मुझे हमेशा उनका आशीर्वाद मिला है, उनके साथ रहने का अवसर मिला। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अंतिम क्षण तक उनके संपर्क में रहा।’
प्रधानमंत्री ने स्वामी के मिशन को जन-जन तक ले जाने के लिए ‘जीवनी, फोटो में’ और वृत्तचित्र के विमोचन पर प्रसन्नता व्यक्त की। श्री मोदी ने इस कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी स्मरणानंद जी महाराज जी को हृदय से बधाई दी।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि स्वामी आत्मस्थानानन्द ने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य पूज्य स्वामी विजनानन्द से दीक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने कहा कि रामकृष्ण परमहंस की जाग्रत बोध अवस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा उनमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी। मोदी ने देश में त्याग की महान परंपरा पर को भी रेखांकित किया। वानप्रस्थ आश्रम भी संन्यास की ओर एक कदम है।
उन्होंने कहा, ‘संन्यास का अर्थ है, स्वयं से ऊपर उठकर समाज के लिए काम करना और समाज के लिए जीना। स्वयं का विस्तार, समुदाय तक। संन्यासी के लिए जीवों की सेवा ही भगवान की सेवा है, जीव में शिव को देखना सर्वोपरि है।’ प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि स्वामी विवेकानंद जी ने सन्यस्त की महान परंपरा को आधुनिक रूप में ढाला। स्वामी आत्मस्थानानन्द जी भी इसी रूप में निवृत्त हुए और इसे जीवन में जिया और लागू किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन द्वारा न केवल भारत में बल्कि नेपाल और बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर किए गए राहत और बचाव कार्यों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के कल्याण के लिए स्वामी जी द्वारा किए गए अथक प्रयासों का उल्लेख किया। मोदी ने गरीबों को रोजगार और आजीविका में मदद करने के लिए स्वामी जी द्वारा निर्मित संस्थाओं की भी चर्चा की।