महामारी संकट की आड़ में शिक्षा का निजीकरण करना चाहती है मोदी सरकार – आइसा

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By PR Desk

अनिल कुमार

समस्तीपुरः देश की नई शिक्षा नीति का आइसा ने कड़ा विरोध किया है। प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील कुमार ने कहा कि कोरोना महामारी की आड़ में मोदी सरकार नई शिक्षा नीति के बहाने शिक्षा का निजीकरण करने पर तुली हुई है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की इस नई नीति से गरीब छात्र पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

आइसा के प्रदेश उपाध्यक्ष ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अनुसार 4 वर्षीय ग्रेजुएशन में पहले, दूसरे तथा तीसरे साल में पढ़ाई छोड़ने पर अलग-अलग तरह की डिग्री दी जाएगी। निजीकरण की ओर बढ़ रही महंगी शिक्षा में गरीब छात्र या तो शिक्षा से बाहर हो जाएंगे या बीच में पढ़ाई छोड़ने पर दूसरे तरह की डिग्री दी जाएगी। जिससे छात्रों के बीच सामाजिक असमानता बढ़ेगी. एमफिल को खत्म करना और एमए की अवधि को घटाना सरकार के शोध के प्रति समझ की कमी को दिखाता है।

उन्होंने कहा कि यूजीसी जैसे संस्थान को खत्म करना सरकार की शिक्षा पर सरकारी खर्च से टांग खींचने को दिखाता है। नई शिक्षा नीति में प्री प्राइमरी को आंगनबाड़ी से जोड़ने की बात हो रही है। जबकि सरकार आंगनबाड़ी कर्मी को सरकारी कर्मी मानती ही नहीं तथा स्वःवित्तपोषण व स्वःविनियमन की प्रणाली के कारण स्कूल तथा कॉलेज का बड़े पैमाने पर निजीकरण व ठेके पर शिक्षकों की बहाली होगी। जिससे स्थायी नौकरी की कमी हो जाएगी। बहुत सारे सरकारी स्कूल तथा कॉलेज को बंद कर दिए जाएंगे।
अतः आइसा निजीकरण व असमानता को बढ़ावा देने वाले इस मसौदे को खारिज करती है और मांग करती है कि सरकार इसे तुरंत वापस ले और संसद में इस पर चर्चा की जाए।

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