मिर्ज़ा ग़ालिब के जयंती के मौके पर पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता JDU ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के संजीव श्रीवास्तव ने नमन किया।

Patna Desk

अगर आप शेर और शायरी के शौकीन हैं तो मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम तो हर हाल में जानते होंगे. उर्दू और फारसी के इस मशहूर शायर का पूरा नाम ‘मिर्ज़ा असद उल्लाह बेग खां उर्फ ग़ालिब’ था. कहा जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब की जिंदगी बहुत दर्द और मुश्किलों में गुजरी थी. कम उम्र पर ही उन्‍होंने अपने माता-पिता को खो दिया था और इसके बाद 7 बच्‍चों को. यही वजह है कि ग़ालिब की शायरी में दिखने वाले दर्द ने उन्‍हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया. लेकिन आपको बता दें कि ग़ालिब की जितनी शायरी मशहूर हैं, उतना ही उनके हाज़‍िर जवाबी के किस्‍से भी प्रसिद्ध हैं. आज मिर्ज़ा ग़ालिब के जयंती के मौके पर पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता JDU ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के संजीव श्रीवास्तव ने नमन किया। आइए यहां जानते हैं कुछ खास किस्‍से और मशहूर शायरी.

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.

 

मिर्ज़ा ग़ालिब आम खाने के बहुत शौकीन थे. कहा जाता है कि एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब अपने कुछ दोस्तों के साथ आम खा रहे थे. तभी वहां से एक गधा गुजर रहा था. उसने आम की तरफ देखा भी नहीं और वहां से गुजर गया. इस बीच उनके दोस्‍तों ने मस्‍ती मजाक में पूछा कि मियां आम में ऐसा क्या है कि इसे गधे भी नहीं खाते हैं. इस पर मिर्ज़ा ग़ालिब बोले ‘मियां, जो गधे हैं वो आम नहीं खाते.’

Share This Article