NEWSPR डेस्क। कटिहार के हसनगंज में झरनी के गीत और तमाम रीत के साथ मोहर्रम मनाते यह सभी हिन्दू समुदाय के लोग है। बड़ी बात यह है की लगभग 5 किलो मीटर के आबादी तक इस गांव में एक भी अल्पस्ख्यक परिवार नहीं है। मगर 100 सालो से भी अधिक समय से इस गांव में हर साल मातम का पर्व मोहर्रम पुरे रीत रिवाज के साथ मनाया जाता है। स्व छेदी साह के मजार से जुड़े इस मोहर्रम के कहानी भी बड़ा ही दिलचस्प है।
ग्रामीणों के माने तो यह जमीन वकाली मियां का था। मगर बीमारी से उनके बेटो के मौत के बाद वह इस जमीन को छोर कर जाने लगे। लेकिन उससे पहले छेदी साह को जमीन देते हुए उन्होंने वादा लिया की ग्रामीण मोहर्रम के दौरान पुरे रीत रिवाज के साथ मोहर्रम मनायेगे। बस पूर्वजो के इसी वायदे को पूरा करते हुए आज भी इस गांव में हिन्दू समुदाय के लोगो के द्वारा मोहर्रम मनाया जाता है।
जनप्रतिनिधि भी इस मोहर्रम को पुरे बिहार के लिए सौहार्द का मिसाल पेश करता एक उम्दा उदहारण मानते है। उनलोगो के माने तो इससे आपसी सौहार्द बढ़ाने के साथ गांव में सुख शांति और समृद्धि भी आई है। सौहार्द का मिसाल पेश करता यह मोहर्रम वाकई में बेहद खास है। एक तरफ जहा इसमें अपने पूर्वजो द्वारा किये गए वादा को निभाने के लिए लोगो के भावना की झलक दिखती है।
वहीं दूसरे धर्म के परम्पराओ के सम्मान करने की सिख भी मिलती है। ग्रामीण जयप्रकाश साह, शंकर लाल साह सहित आदि गांव वालों का कहना है की हर साल मोहर्रम पर्व के दौरान मुस्लिम रीति-रिवाज को अपनाते हुए इस मातम पर्व को मनाते हैं। जिसमें पुरुषों के मुकाबले महिलाएं भी शामिल होते है। जिनके द्वारा पूजा पाठ भी किया जाता है।
कटिहार से रतन कुमार की रिपोर्ट