विक्रमशिला के उत्थान को लेकर राजनीतिक सरगर्मी हुई तेज, होता है कागज पर काम ,जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं।

Patna Desk

 

भागलपुर 2008 से भागलपुर के कहलगांव अंतीचक में विक्रमशिला महोत्सव की शुरुआत हुई। तब से लेकर अब तक नालंदा की तर्ज पर विक्रमशिला के विकास की सिर्फ बातें हो रही है। बिहार सरकार गठबंधन बदलती रही, लेकिन सीएम नीतीश कुमार स्थिर रहे। 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने 500 करोड़ की राशि विक्रमशिला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए केंद्र सरकार द्वारा देने की घोषणा भी किया। लेकिन बिहार की राज्य सरकार अभी तक उन इलाकों में 500 एकड़ जमीन उपलब्ध नहीं करा पाई है। 2020 के विक्रमशिला महोत्सव के दौरान आरजेडी के विधायक विरोध प्रदर्शन पर थे तो अब 2023 के विक्रमशिला महोत्सव पर बीजेपी के विधायक विरोध प्रदर्शन पर हैं।

पहली झांकी विक्रमशिला महोत्सव 2020 का देखिए…महोत्सव स्थल के ठीक बगल में तब बिहार में विपक्षी दल के आरजेडी से पीरपैंती विधायक राम बिलास पासवान विक्रमशिला सेंट्रल यूनिवर्सिटी की मांग को लेकर एक दिवसीय धरने पर थे। राज्य की मौजूदा नीतीश सरकार से नालंदा की तर्ज पर विक्रमशिला के विकास की मांग कर रहे थे।

दूसरी झांकी विक्रमशिला महोत्सव 2023 की देखिए…

महोत्सव स्थल के ठीक बाहर विपक्षी दल में बीजेपी के कहलगांव विधायक पवन यादव सर पर काली पट्टी बांधे विक्रमशिला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के स्थापना की मांग कर रहे हैं। जबकि पीरपैंती से बीजेपी विधायक ललन जी पासवान कहते हैं कि जो मसला अब सदन का हो चुका उसको लेकर सड़क पर माननीय का प्रदर्शन शोभा नहीं देता।

ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार विक्रमशिला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए प्रयास नहीं कर रही, बल्कि 2 जुलाई 2021 को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय को कहलगांव पीरपैंती इलाके के परशुरामचक एकडरा इलाके की 250 एकड़ जमीन की रिपोर्ट केंद्रीय साइट सेलेक्शन कमिटी को सौंपी भी गई। उसके बाद लेकिन अभी तक भू अर्जन की रिपोर्ट सर्किल ऑफिसर की तरफ से उपलब्ध नहीं हो पाई है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव से पहले 18 अगस्त 2015 को एक रैली में बिहार के लिए पैकेज की घोषणा की थी। उसमें विक्रमशिला विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक स्थल के पास एक केंद्रीय विश्वविद्यालय शामिल था। जो नालंदा और तक्षशिला के साथ प्राचीन भारत के तीन प्रमुख बौद्ध विश्वविद्यालयों में से एक था।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 12 शताब्दी पहले पाल राजाओं के अधीन हुई थी और यह लगभग 400 वर्षों तक संचालित रहा।

Share This Article