NEWSPR डेस्क। औरंगाबाद क्या महज भ्रष्टाचार के आरोपों से ही किसी की नौकरी जा सकती है? वो भी ऐसे समय में जब कोर्ट ने उस शख्स को सभी आरोपों से बरी कर दिया हो। ऐसा ही कुछ हुआ है समाज कल्याण विभाग के एक कर्मी उपेंद्र प्रसाद के साथ, जो अब भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। यही नहीं वो बदनामी का भी सामना कर रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य सरकार उन्हें बहाल नहीं कर रही, जबकि विजिलेंस कोर्ट ने उन्हें केस से 2018 में ही बरी कर दिया है।
औरंगाबाद के देव प्रखंड में रहने वाले उपेंद्र प्रसाद 29 नवंबर 2004 को BPSC परीक्षा के जरिए समाज कल्याण विभाग में सांख्यिकीय सहायक के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद, उन्हें अरवल में बाल विकास परियोजना ऑफिस में पोस्टिंग मिली। यहां से उन्हें उसी विभाग में नवादा के नारदीगंज शिफ्ट कर दिया गया। 13 सितंबर, 2011 को नवादा के तत्कालीन एसडीओ एसजेड हसन के औचक निरीक्षण के दौरान उपेंद्र प्रसाद पर आंगनवाड़ी सेविकाओं ने रिश्वत मांगने के आरोप लगाए। जिसमें कार्रवाई हुई और उन्हें जेल भेज दिया गया।
एसडीओ ने उपेंद्र प्रसाद के पास से 18,820 रुपये बरामद करने का भी दावा किया। उन्हें 13 सितंबर, 2011 को हिरासत में लिया गया था, फिर 24 घंटे बाद 14 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इन्हीं आरोपों के आधार पर आरोपी को बाद में सर्विस से बर्खास्त कर दिया गया था और मामला अदालत में लंबित था।
मामले की सुनवाई के दौरान, विजिलेंस कोर्ट ने किसी भी आंगनवाड़ी सेविका से पूछताछ नहीं करने के लिए अभियोजन पक्ष की कड़ी खिंचाई की। आरोपी कर्मचारी ने कथित रूप से रिश्वत की मांग की थी और फिर रिश्वत के पैसे को कोर्ट के सामने पेश नहीं किया। अभियोजन पक्ष ने छापे के दौरान कथित तौर पर उपेंद्र प्रसाद से बरामद ‘रिश्वत के पैसे’ को पेश नहीं करने के लिए कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिश्वत का पैसा अदालत के सामने पेश नहीं किया गया। इसी आधार पर कोर्ट ने उपेंद्र प्रसाद को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने 18 सितंबर, 2018 को जारी अपने फैसले में ये आदेश दिए।
अब बहाली को लेकर भटक रहे उपेंद्र प्रसाद
अदालत से बरी होने के बाद भी उपेंद्र प्रसाद पिछले चार साल से अपनी बहाली के लिए दर-दर भटक रहे हैं। लेकिन सरकार ने उनकी अपील पर कोई ध्यान देने से इनकार कर दिया है। अब उनके रिटायरमेंट में दो महीने ही बचे हैं। जब उपेंद्र प्रसाद ने मदद के लिए संबंधित सहायक निदेशक से संपर्क किया। हालांकि, उन्हें मिले आधिकारिक लेटर में बताया गया कि सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही। इसलिए आपको नौकरी पर बहाल करने का मतलब भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा।
भुखमरी की कगार पहुंच गए हैं उपेंद्र प्रसाद
उपेंद्र प्रसाद ने अधिकारी की इस तरह की टिप्पणी पर हैरानी जताई। उन्होंने कहा कि जब मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए हैं और कोर्ट ने मुझे मामले में बरी कर दिया है, तो जीरो टॉलरेंस की नीति मुझ पर कैसे लागू होती है? सरकार के इस फैसले की वजह से हम भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। अब इस मामले में समाज कल्याण विभाग के सचिव प्रेम सिंह मीणा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह इस मामले को देखेंगे।