बिहार में विकास की कहानी हमेशा सियासत और ज़मीन से जुड़ी पेचीदगियों के बीच लिखी जाती रही है। भागलपुर से भलजोर (हंसडीहा) तक बनने वाली 70 किलोमीटर लंबी फोरलेन सड़क भी इसी सिलसिले की ताज़ा कड़ी है। करीब दो साल से भूमि अधिग्रहण की दिक़्क़तों में उलझी यह परियोजना अब नए स्वरूप में आगे बढ़ने वाली है। सरकार ने एक बार फिर ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन इस बार बदले हुए नक्शे और संशोधित योजना के साथ।नई डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) मुख्यालय भेज दी गई है।
इसमें सड़क की चौड़ाई पहले के 55-60 मीटर से घटाकर 50-55 मीटर रखी गई है। वहीं सर्विस लेन भी 7 मीटर से घटकर 5.5 मीटर रह जाएगी। इसका सीधा असर मुआवज़े पर पड़ेगा—अनुमान है कि अधिग्रहण पर खर्च 150 करोड़ से घटकर करीब 105 करोड़ पर सिमट जाएगा। कुल मिलाकर परियोजना की लागत में 35 से 40 करोड़ की कटौती की जाएगी।सड़क निर्माण बिहार की राजनीति का अहम मुद्दा रहा है। भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन केवल बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक रफ़्तार और सामाजिक जीवन से जुड़ा मसला है। परियोजना के अटकने से लोगों में निराशा थी, और अब संशोधित योजना आने से उम्मीद के साथ-साथ संदेह भी बढ़ गया है।
लोगों को भरोसा है कि सड़क बनेगी, मगर चिंता है कि चौड़ाई घटने से उसका असर अधूरा न रह जाए।सरकार इस बार “कम से कम ज़मीन का अधिग्रहण, कम से कम घर टूटें” के सिद्धांत पर काम कर रही है। अलीगंज बाईपास से ढाकामोड़ तक बनने वाले फोरलेन में सर्विस रोड को छोटा किया गया है, ताकि हाट पुरैनी, सांझा, रजौन और पुनसिया जैसे इलाक़ों में लोग विस्थापित न हों। पहले जिन जगहों पर भूमि अधिग्रहण विवाद की आशंका थी—जैसे सांझा की गैरमजरूआ ज़मीन, टेकानी का खंता, धौनी की नदी-पोखर, कटियामा की दुकानें और रास्ते, रजौन के घर और केवाड़ी का स्कूल परिसर—वहां अब कम से कम दख़ल देने की कोशिश की जाएगी।इस परियोजना को अब केवल तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि राजनीतिक परीक्षा भी माना जा रहा है।
अगर काम समय पर बिना विवाद के पूरा हुआ तो यह सरकार के लिए विकास का बड़ा कार्ड साबित हो सकता है। लेकिन यदि भूमि विवाद दोबारा उभरे, तो विपक्ष को सरकार पर निशाना साधने का अवसर मिलेगा।फिलहाल स्थिति साफ़ है—सड़क बनेगी, लेकिन पहले जैसी चौड़ी नहीं। घर बचेंगे, मगर सर्विस लेन सिकुड़ जाएगी। खर्च घटेगा, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह कटौती विकास की रफ़्तार को सीमित कर देगी? यानी भागलपुर-हंसडीहा फोरलेन का नया नक्शा सिर्फ़ डामर और कंक्रीट का ढांचा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति और जनता की धैर्य-सीमा की असली परख है।