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‘शराबबंदी कानून लागू करने में बिहार सरकार फेल’, पटना हाई कोर्ट की नजर में ये हैं कमियां

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NEWSPR डेस्क। पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिहार के लोगों की जान जोखिम में इसलिए पड़ी है क्योंकि राज्य सरकार अपने बहुचर्चित शराबबंदी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रही है। एक याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश पूर्णेंदु सिंह की एकल पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए हुए कहा कि बिहार में शराबबंदी कानून को ठीक से लागू नहीं होने के कारण नागरिकों के जीवन और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने 20 पेज के आदेश में शराबबंदी कानून के नौ प्रतिकूल प्रभावों की चर्चा की है।

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा प्रदेश की महिलाओं से किए गए वादे के अनुसार अप्रैल 2016 में जदयू नीत सरकार ने राज्य में शराब की बिक्री और खपत पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। पीठ ने मुजफ्फरपुर जिले के एक निवासी की जमानत याचिका को निस्तारित करते हुए उक्त टिप्पणी की। अदालत ने पाया कि समय-समय पर संशोधित बिहार निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने में राज्य मशीनरी की विफलता से राज्य के नागरिकों का जीवन जोखिम में है। अदालत ने शराबबंदी लागू होने के बाद हो रही बड़ी संख्या में जहरीली शराब की त्रासदी को सबसे चिंताजनक परिणाम के रूप में रेखांकित किया और राज्य सरकार को नकली शराब के सेवन से बीमार होने वालों के इलाज के लिए मानक संचालन प्रोटोकॉल विकसित करने में विफल रहने पर फटकार लगाई।

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राज्य के बाहर और नेपाल से शराब की तस्करी बढ़ी जो एक आर्थिक अपराध है
शराब तस्करी में चोरी किए हुए वाहनों का उपयोग और उसमे फर्जी रजिस्ट्रेशन का इस्तेमाल
मासूम बच्चों को शराब तस्करी में शामिल करना
शराब को नष्ट करने से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर
तलाशी, जब्ती और जांच के संचालन में जांच अधिकारी द्वारा छोड़ी गई कमी
दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक करवाई करने में राज्य की विफलता
मानव क्षमता की हानि -शराबबंदी ने सस्ती शराब और नशीली दवाओं के सेवन को बढ़ावा दिया है, जिससे अवैध शराब की समानांतर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है
नशीली दवाओं खपत और इसके आदी व्यक्तियों की संख्या में तेज वृद्धि
जहरीली शराब -मिथाइल अल्कोहल के सेवन से मृत्यु

अदालत ने कहा कि अवैध शराब में मिथाइल होता है जिसमें से पांच मिली लीटर किसी को अंधा करने के लिए पर्याप्त होता है। 10 मिली लीटर अक्सर घातक होता है और यह विचार व्यक्त किया कि ऐसे मरीजों के इलाज के लिए अलग स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए और इसका संचालन विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि शराब के अलावा अवैध दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग चिंता का एक और कारण है और राज्य भर में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने में विफल होने के लिए सरकार की खिंचाई की। अदालत ने चिंता व्यक्त किया कि चरस, गांजा और भांग की मांग शराबबंदी के बाद से बढ़ गयी और अधिकांश नशा करने वाले 25 साल से कम उम्र के तथा कुछ तो 10 साल से भी कम उम्र के थे।

नौकरशाही में भ्रष्टाचार पर अदालत ने कहा कि पुलिस, आबकारी और परिवहन विभागों के अधिकारियों के लिए शराब प्रतिबंध का मतलब बड़ा पैसा है। गरीबों के खिलाफ दर्ज मामलों की तुलना में किंगपिन/ सिंडिकेट ऑपरेटरों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या कम है। अधिकांश गरीब जो इस अधिनियम के प्रकोप का सामना कर रहे हैं, वे दिहाड़ी मजदूर और अपने परिवार में कमाने वाले अकेले सदस्य हैं। अदालत ने राज्य सरकार की कांच या प्लास्टिक से बनी कुचली हुई शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने की नीति की कुछ प्रशंसा की। अदालत ने हालांकि बोतलों में निहित शराब के संबंध में पर्यावरण के अनुकूल नीति की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि जिन स्थानों पर इसे नष्ट किया जाता है वहां के इलाकों में भूमिगत जल और मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो गई है। पूर्ण शराबबंदी वाले राज्य में शराब की तस्करी का एक नया तरीका नाबालिगों को काम पर रखने पर भी अदालत द्वारा चिंता व्यक्त की गई और कहा गया कि तस्कर जानते हैं कि उनके (बच्चे) पकडे जाने पर उनका ट्रायल जुवेनाइल कोर्ट में होगा और वे कुछ महीनों में छूट जाएंगे।

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