कभी समय था जब बिहार के सरकारी अस्पतालों में न तो डॉक्टर उपलब्ध होते थे और न ही पर्याप्त संसाधन। डॉक्टरों की भारी कमी से जूझते इस राज्य में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह बदहाल थी। 2005 से पहले पूरे बिहार में मात्र 6 सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल मौजूद थे और MBBS की महज 390 सीटें थीं।लेकिन बीते दो दशकों में तस्वीर काफी बदल गई है। नीतीश सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार हुए हैं।
अब बिहार न सिर्फ चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि देशभर में एक मजबूत पहचान भी बना रहा है।साल 2025 तक राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी होकर 12 हो चुकी है, और 22 नए मेडिकल कॉलेजों का निर्माण तेज़ी से जारी है। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 34 हो जाएगी।इतना ही नहीं, MBBS की सीटों में भी जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। जहां 2005 में कुल 390 सीटें थीं, वहीँ 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 5220 तक पहुंचने वाला है। इससे ना केवल बिहार के युवाओं को मेडिकल क्षेत्र में पढ़ाई के ज्यादा अवसर मिलेंगे, बल्कि अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी भी दूर होगी।सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज ही नहीं, प्राइवेट सेक्टर में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2005 में जहां केवल 2 निजी मेडिकल कॉलेज थे और 120 सीटें उपलब्ध थीं, वहीं अब उनकी संख्या बढ़कर 9 हो गई है, और MBBS सीटों की संख्या 1350 तक पहुंच गई है।
एलोपैथिक चिकित्सा के साथ-साथ बिहार सरकार आयुष पद्धतियों को भी बढ़ावा दे रही है। मुजफ्फरपुर में 200 बेड वाला सुपर-स्पेशलिटी होम्योपैथी अस्पताल निर्माणाधीन है। इसके अलावा दक्षिण बिहार में भी एक नए होम्योपैथी कॉलेज और अस्पताल की स्थापना हो रही है।सरकार ने हाल ही में 2901 आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति की है। राज्य में फिलहाल 294 आयुष आरोग्य मंदिर संचालित हो रहे हैं और 86 नए आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के निर्माण की भी योजना बनाई गई है।बिहार की यह प्रगति यह दर्शाती है कि आने वाले वर्षों में राज्य स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में देश में एक नई मिसाल कायम कर सकता है।