विधानसभा की अबतक की सबसे उपेक्षित पुस्तकालय समिति को माले विधायकों ने बनाया कामकाजी, त्वरित पहलकदमी में अब सब समितियों से आगे.
बिहार विधानसभा में पुस्तकालय समिति को सबसे फिसड्डी समिति माना जाता रहा है. इस बार यह समिति भाकपा-माले के कोटे में आई. विधायक सुदामा प्रसाद इसके अध्यक्ष बनाए गए और संदीप सौरभ इसके एक सदस्य बने.
सुदामा प्रसाद के नेतृत्व में इस कमिटी ने महज 4 महीनों में कई ऐसे काम किए जिसके कारण यह कमिटी अब विधानसभा की सभी कमिटियों में सबसे ज्यादा सक्रिय और कामकाजी बन गई है.
इस कमिटी ने विधानसभा सत्र के दौरान अपने अधिकार के दायरे में पड़ने वाले सभी पुस्तकालयों की स्थिति पर चर्चा के लिए विधानसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाया. आम लोगों और बुद्धिजीवियों ने इस पहलकदमी का व्यापक तौर पर स्वागत किया और एक तरह से बिहार में लाइब्रेरी आंदोलन की नई शुरुआत हुई.
पटना में कारगिल चौक से लेकर इंजीनियरिंग मोड़ तक बिहार सरकार के प्रस्तावित फ्लाई ओवर की जद में जब ऐतिहासिक खुदा बक्श लाइब्रेरी के साथ-साथ कई हेरिटेज भवन आ गए, और उनके भवनों को तोड़ने की योजना बनाई जाने लगी, तब एक बार फिर लाइब्रेरी कमिटी ने अपनी त्वरित सक्रियता दिखलाई. कॉमरेड सुदामा प्रसाद और कॉमरेड Sandeep Saurav के नेतृत्व में पटना के नागरिकों की एक बैठक बुलाकर खुदाबख्श लाइब्रेरी बचाओ मोर्चा का गठन किया गया और लड़ाई छेड़ दी गई. सुदामा प्रसाद ने इस बाबत बिहार के मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा, ऑनलाइन कैंपेनिंग चलाई गई और सरकार पर चौतरफा दबाव बनाया गया. इसी का नतीजा हुआ कि सरकार को बैक फुट पर जाना पड़ा और ताजा जानकारी यह है कि लाइब्रेरी के अब किसी भी हिस्से को नहीं तोड़ा जाएगा.
बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति के 100 वर्षों के इतिहास में आज तक कोई प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं हुआ है. इस बार की समिति ने इसे गम्भीरता से लिया है और बिहार विधानसभा के इतिहास में पुस्तकालय समिति का पहला प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की तैयारी आरम्भ कर दी गई है.
अब तक उपेक्षित पड़ा पुस्तकालय समिति अब एक कामकाजी संस्था के बतौर काम कर रही है. आने वाले दिनों में बिहार एक व्यापक लाइब्रेरी आंदोलन का गवाह बन सकता है