नाव पर सवार हो कर विदा हुई दुल्हन , ग्रामीणों ने कहा – दशकों से विकास नहीं हुआ है

Patna Desk

NEWSPR/PATNADESK : नदी में नाव की सवारी करते देख भले ही आपको यह तस्वीर 19 वी सदी के जैसा लग रहा होगा लेकिन वास्तविक में यह डरावनी तस्वीर 21 वि सदी की है। आपको बता दें कि यह तस्वीर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले की है। जो विकास को मुह चिढा रहा है। गौरतलब है कि गुरुवार को गांव में बारात आई थी। शादी के बाद नाव पर बिठाकर बारातियों को विदा किया गया। हिचकोले खाती हुई नई नवेली दुल्हन नाव पर अपने हमसफर के साथ जिंदगी के नए सफर पर निकल पड़ी।
गांव के पास नाव खड़ी है और उसपर नया घर बसाने के लिए घर गृहस्थी का सारा साजो सामान लदा हुआ है। लेकिन बीच मजधार में नाव डोली तो क्या होगा ये सोच कर ही मन सिहर उठता है। शादी ब्याह जिंदगी का यादगार मौका होता है। इस खास दिन को लेकर कितने सारे अरमान होते हैं लेकिन गांव में पुल नहीं रहने के कारण सारे सुनहरे ख्वाब मटिया मेट होकर रह गए हैं। इस साथ नई नवेली दुल्हनिया को भी पानी के बीच डोलती नाव से ही नहीं जिंदगी की पहली सफर पर निकला पड़ रहा है।इस समस्या से आम आदमी भी कम परेशान नहीं है।

आपको बता दे कि जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर हरगावां पंचायत के नेवाजी बिगहा से होकर गुजरने वाली सोईबा नदी में जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को विवश हैं। इस गांव के लोग अब भी सोइबा नदी को पार करने के लिए नाव का ही सहारा लेते हैं। अत्यंत कष्टदायी व भय के साये में यात्री नाव के सहारे अपने-अपने घरों से रोज आते व जाते हैं।

नवाजी बिगहा, डंबर बिगहा, हरगावां, बभन बिगहा, प्रभु बिगहा, विष्णुपुर, गुलनी, नेपुरा, प्रभु विगहा, बेरौटी, इंद्रपुर गांव के हजारो लोग इससे प्रभावित है। पिछले चुनाव में पूल बनाने की मांग की गई थी, जिसे लेकर वोट वहिष्कार भी हुआ था। उस वक़्त आश्वासन दिया गया, लेकिन आश्वासन फाइलों में ही सिमट कर रह गया। गौरतलब है कि राजगीर विधानसभा में पिछले 45 सालों से एनडीए के विधायक अपनी कुर्सी की गद्दी पर काबिज रह चुके है।वावजूद इन ग्रामीणो को आज तक पुल का निर्माण नही हो सका।

स्थानीय ग्रामीण ने कहा कि गांव के लोगों को पुल नहीं रहने से रोजमर्रा की परेशानियों से जूझना पड़ता है। हर दिन जिदगी से जद्दोजहद करना पड़ता है। नदी के आसपास के दर्जन भर गांव की हजारों की आबादी पुल नहीं होने से बुरी तरह प्रभावित हैं। विकास से पूरी तरह वंचित हैं। लोग नाव के सहारे जान जोखिम में डालकर जीवन जीने को मजबूर और लचार हैं। जो भी एक बार इस गांव में आते हैं तो फिर भगवान से यही दुआ करते हैं कि वह पुनः इस गांव में वापस लौट कर ना आये। अगर किसी की बारात आती है तो विदाई से लेकर बरात आने जाने तक का काम एकमात्र सहारा होता है।

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