बिहार के मधेपुरा जिले के ग्वालपाड़ा प्रखंड स्थित ललिया टोला गांव में बीते तीन महीनों से चेचक (चिकनपॉक्स) का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस वायरस से गांव के हर उम्र के लोग प्रभावित हो चुके हैं — बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इसकी चपेट में हैं। तेज बुखार, शरीर पर चकते, खुजली और कमजोरी जैसे लक्षणों से ग्रामीण बेहद परेशान हैं।हालात इतने गंभीर हैं कि गांव में शायद ही कोई ऐसा घर बचा हो, जहां चेचक का मरीज न हो। कई बच्चों के चेहरों पर स्थायी दाग पड़ गए हैं, और कुछ की तबीयत चिंताजनक बनी हुई है। बुखार और खुजली ने छोटे बच्चों को इतना कमजोर कर दिया है कि वे खाना तक नहीं खा पा रहे हैं।
चेचक से प्रभावित मरीजों में आमतौर पर ये लक्षण देखे जा रहे हैं:
तेज बुखारपूरे शरीर पर चकते और फफोले
असहनीय खुजली
अत्यधिक कमजोरी और भूख की कमी
बच्चों में बेहोशी या लगातार रोना
अफसोस की बात यह है कि गांव में जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। शिक्षा के अभाव और गहरी जड़ें जमा चुके अंधविश्वास के चलते लोग इसे ‘माता का प्रकोप’ मान रहे हैं और झाड़फूंक जैसे पारंपरिक उपायों का सहारा ले रहे हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ रही है।इस क्षेत्र की गरीबी और स्वास्थ्य संसाधनों की अनुपलब्धता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। ग्रामीणों को सही जानकारी और इलाज तक पहुंच दिलाना अब सबसे बड़ी जरूरत बन गया है।