ताजा घटनाक्रम में ऐसा बहुत कुछ है जो सिवान से बिहार की राजनीति में नए समीकरण का इशारा दे रहा है।
शनिवार को ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांचों विधायक जब शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब से मिलने पहुंचे तो सियासी गलियारे में हलचल मच गई। बिहार में बीजेपी की बी टीम के खिताब से नवाजी जा चुकी ओवैसी की पार्टी फिलहाल न तो सत्ता के साथ है और न ही विपक्ष के साथ। ऐसे में सवाल ये उठता है कि ओवैसी की पार्टी को शहाबुद्दीन के बेटे से क्या फायदा है।
इतना तो तय है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल में अपनी पैठ न सिर्फ बनाई बल्कि 5 सीटें हासिल कर अपनी उभरती ताकत भी दिखाई। अल्पसंख्यकों को भी ओवैसी की पार्टी में अपना नया हमदर्द दिखने लगा है। लेकिन सिर्फ सीमांचल की सीटों से ओवैसी बिहार की जंग नहीं जीत सकते। जाहिर है कि पांव फैलाने जरूरी हैं। और… ऐसे में ओसामा यानि शहाबुद्दीन के बेटे उनके लिए मुफीद हैं। क्योंकि वो RJD से नाराज हैं और बीजेपी यानि NDA की तरफ जाने से रहे।
यानि ऐसे समझ लीजिए कि शहाबुद्दीन की मौत पर हमदर्दी दिखा ओवैसी की पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने की फिराक में है।
ओसामा ये बखूबी जानते हैं कि RJD से अलग रहकर वो सियासी जंग में बहुत कारगर साबित नहीं होंगे। क्योंकि सिवान से बाहर दूसरे जिले जैसे सीमांचल में अल्पसंख्यकों के अलग मुद्दे हैं। ऐसे में वहां के अल्पसंख्यक वोट उन्हें मिल जाएं ये पूरी तरह से पक्का नहीं कहा जा सकता। अगर ओसामा ओवैसी से हाथ मिला लेते हैं तो गैर महागठबंधन और गैर NDA से इतर उनका अपना अल्पसंख्यक वोट बैंक बन सकता है। वहीं शहाबुद्दीन की मौत के बाद कमजोर पड़े परिवार में नई जान भी आ सकती है।