बिहार में कोरोना के खौफ के बीच बच्चों पर MIS-C का कहर, जानिए इसके कारण, लक्षण और बचाव का तरीका

Patna Desk

बिहार में कोरोना केसेस के मामलों में कमी देखी जा रही है. रिकवरी रेट भी पहले से बेहतर होता दिख रहा है. रविवार को सूबे में 1500 से भी कम केस सामने आए. हालांकि संक्रमण में कमी के साथ ही जटिलताओं से अभी कोई राहत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कोरोना के बाद ब्लैक फंगस और हैपी हाइपोक्सिया के कई केस तेजी से सामने आ रहे हैं. इसी बीच अब बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C) के मामले सामने आए हैं. बिहार में दो बच्चों में इसके लक्षण भी मिले हैं.

क्या है मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम?
मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम की चपेट में वो बच्चे आ रहे हैं, जो कोरोना संक्रमित रह चुके हैं. या फिर जिनके घर में लोग कोरोना पॉजिटिव रहे हैं. बच्चों से जुड़े इस मामले के सामने आने के बाद परिजन की टेंशन बढ़ गई है. विशेषज्ञों ने उन माता-पिता को खास तौर से सतर्क रहने की सलाह दी है, जिसके बच्चे या फिर परिवार में किसी सदस्य को कोविड का संक्रमण हुआ हो और अब वो ठीक हो चुके हों.

डॉक्टर्स का क्या है कहना?
जाने-माने चाइल्ड स्पेशलिस्ट और पीएमसीएच में बाल रोग विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ निगम प्रकाश नारायण ने बताया कि इस हफ्ते मेरे पास ऐसे दो मामले आए. एक खगड़िया का 10 साल का बच्चा है और दूसरा पटना का 11 महीने का मासूम है. उन्होंने बच्चों के माता-पिता को सलाह दी है कि अगर किसी बच्चे को कोरोना का संक्रमण हुआ तो ठीक होने के बाद करीब 6 से 8 हफ्ते उनके स्वास्थ्य को लेकर अलर्ट रहना चाहिए. उन्होंने बताया कि एमआईएस-सी एक गंभीर स्थिति है, लेकिन ठीक समय पर इलाज मिले तो ठीक हो सकता है.

MIS-C का असर दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं
मुजफ्फरपुर स्थित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण शाह ने कहा कि हालांकि केवल 0.14 फीसदी संक्रमित बच्चों में एमआईएस-सी हो सकता है, लेकिन इसके लिए सतर्कता जरूरी है. उन्होंने कहा कि बच्चों में लगातार बुखार, चकत्ते, थकान, लाल आंखें और दस्त होने की स्थिति में, माता-पिता को तुरंत ही उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए. उनकी सलाह से ही जरूरी दवाएं और इलाज करना चाहिए.

इलाज को लेकर बरतनी होगी खास सावधानी
डॉ शाह ने कहा कि एमआईएस-सी को लेकर माता-पिता, डॉक्टरों के साथ-साथ और सरकार को भी संवेदनशील होना होगा. इसका इलाज टाइफाइड या डेंगू की तरह नहीं किया जा सकता. इसके इलाज की एक अलग लाइन है और अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ सकती है. डॉक्टरों ने कहा कि एमआईएस-सी से प्रभावित बच्चों के इलाज के लिए Intravenous Immunoglobulin जरूरी है, जो महंगा होता है.

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