NEWSPR डेस्क। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले वीर विनायक दामोदर सावरकर की आज 56वीं पुण्यतिथि है। जिसे लेकर जदयू ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने उन्हें कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे और हिंदुत्व के पक्के पैरोकार थे। उन्होंने रत्नागिरी में अस्पृश्यता को खत्म करने लिए काम किया और सभी जातियों के हिंदुओं के साथ खाना खाने की परंपरा भी शुरू की थी। हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाया था।
सावरकर के बारे में सबसे बड़ी बात यही कही जाती है कि जब उन्हें इंग्लैंड से गिरफ्तार करके जहाज़ में ले जाया जा रहा था, तो वह समुद्र में कूद गए। अगले दो दिन तक भूखे-प्यासे तैरते रहे और अंततः फ्रांस के समुद्र तट पर पहुंच गए। इसी घटना के आधार पर उन्हें वीर की उपाधि दी जाती है। लेकिन सावरकर ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा आजीवन कारावास’ के पेज 457 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि कई दिन तक समुद्र में तैरने की बात बहुत ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है। सावरकर ने लिखा, ‘एक सिपाही ने पूछा, आप कितने दिन और रात समुद्र में तैरते रहे थे। अर्थात मोर्सेलिस! इसमें हमने कहा, कैसे दिन-रात? बस 10 मिनट भी नहीं तैरा कि किनारा आ गया। यह अप्रत्याशित उत्तर सुनते ही उसके अकुलप्रिय आदर ने लक्षणीय झटका खाया। दूसरी बात यह प्रचारित होती है कि उन्होंने सेल्यूलर जेल की दीवारों पर पत्थर से अपनी आत्मकथा लिखी और अंग्रेज़ों को चुनौती देने वाली क्रांतिकारी बातें लिखीं। इससे ऐसा आभास होता है कि कई वर्षों तक सावरकर को जेल में इन्हीं हालात में रहना पड़ा। उनके समर्थन में प्रचार करने वाले अक्सर यह दलील देते हैं कि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू जैसे लोग जेल में रहकर आराम से क़िताबें लिखा करते थे, जबकि सावरकर कष्ट भोगते थे। वहीं, जब सावरकर जेल में बंद थे, तब उन्होंने 1857 की क्रांति पर आधारित विस्तृत मराठी ग्रंथ ‘1857 चे स्वातंत्र्य समर’ लिखा था. यह ग्रंथ बेहद चर्चित हुआ था और इसी के नाम से अत्रे ने सावरकर को ‘स्वातंत्र्यवीर’ नाम दिया था। 26 फरवरी 1966 को सवारकर जी की मृत्यु हो गई।