कोरोना संग चमकी बुखार भी बरपाने लगा कहर, एसकेएमसीएच में ढाई वर्षीय बच्चे ने तोड़ा दम

Patna Desk

Patna Desk: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कोरोना के कहर के साथ-साथ अब चमकी बुखार ने भी कहर बरपाना शुरू कर दिया है. मुजफ्फरपुर जिले से और उसके आसपास के जिलों से चमकी बुखार के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. चमकी नाम के बुखार की चपेट में आने से कई बच्चों ने अपनी जान गवाई हैं. ‘एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम’ (Acute Encephalitis Syndrome) यानी ‘चमकी बुखार’ दरअसल एक तरह का मस्तिष्क ज्वर होता है. इम्युनिटी कमजोर होने की वजह से करीब 1 से 8 साल के बीच की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते हैं.

मुजफ्फरपुर

दरअसल, ताजा मामला सामने ऐ रहा है जिले के एसकेएमसीएच से. जहां चमकी बुखार से पीड़ित एक और बच्चे ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. यानी अब तक कुल चार बच्चे चमकी बुखार से दम तोड़ चुके हैं. एसकेएमसीएच के पीकू वार्ड में भर्ती पारू के ढाई वर्षीय अरगान की देर शाम इलाज के दौरान मौत हो गई. चमकी बुखार का लक्षण दिखने के बाद गंभीर हालत में उसे सोमवार की सुबह एसकेएमसीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जांच क्रम में उसके चमकी बुखार से पीड़ित होने की पुष्टि हुई थी.

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गौरतलब है की इस वर्ष एसकेएमसीएच में अब तक चमकी बुखार के 20 मामलों की पुष्टि में हो चुकी है. जिनमें से 4 बच्चों की मौत इलाज के दौरान हो गई. मुजफ्फरपुर की बात करें तो सिर्फ 9 बच्चों में ही चमकी बुखार की पुष्टि हुई है.

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क्या है ‘चमकी’ बुखार
एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम को बोलचाल की भाषा में लोग चमकी बुखार कहते हैं. इस संक्रमण से ग्रस्त रोगी का शरीर अचानक सख्त हो जाता है और मस्तिष्क व शरीर में ऐठंन शुरू हो जाती है. आम भाषा में इसी ऐठन को चमकी कहा जाता है. इंसेफ्लाइटिस मस्तिष्क से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. दरअसल, मस्तिष्क में लाखों कोशिकाएं और तंत्रिकाएं होती हैं, जिसकी वजह से शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं.लेकिन जब इन कोशिकाओं में सूजन आ जाती है तो उस स्थिति को एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है.

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चमकी बुखार के लक्षण
चमकी बुखार में बच्चे को लगातार तेज बुखार रहता है. बदन में ऐंठन होती है. बच्चे दांत पर दांत चढ़ाए रहते हैं. कमजोरी की वजह से बच्चा बार-बार बेहोश होता है. यहां तक कि शरीर भी सुन्न हो जाता है और उसे झटके लगते रहते हैं.

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मस्तिष्क रोग में जरूरी जांच
एंसिफलाइटिस के दौरान डॉक्टर एमआरआई या सीटी स्कैन करवा सकते हैं. इसके अलावा इस बुखार की पहचान खून या पेशाब की जांच से भी हो सकती है. प्राइमरी एंसिफलाइटिस के मामलों में लंबर पंक्चर यानी रीढ़ की हड्डी से द्रव्य का सेंपल लेकर जांच की जाती है. इसके अलावा दिमाग की मस्तिष्क की बायोप्सी भी की जा सकती है.

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बुखार आने पर क्या करें

  • बच्चे को तेज बुखार आने पर उसके शरीर को गीले कपड़े से पोछते रहें. ऐसा करने से बुखार सिर पर नहीं चढ़ेगा.
  • पेरासिटामोल की गोली या सिरप डॉक्टर की सलाह पर ही रोगी को दें.
  • बच्चे को साफ बर्तन में एक लीटर पानी डालकर ORS का घोल बनाकर दें. याद रखें इस घोल का इस्तेमाल 24 घंटे बाद न करें.
  • बुखार आने पर रोगी बच्चे को दाएं या बाएं तरफ लिटाकर अस्पताल ले जाएं.
  • बच्चे को बेहोशी की हालत में छायादार स्तान पर लिटाकर रखें.
  • बुखार आने पर बच्चे के शरीर से कपड़े उतारकर उसे हल्के कपड़े पहनाएं. उसकी गर्दन सीधी रखें.

बुखार आने पर क्या न करें

  • बच्चे को खाली पेट लीची न खिलाएं.
  • अधपकी या कच्ची लीची का सेवन करने से बचें.
  • बच्चे को कंबल या गर्म कपड़े न पहनाएं.
  • बेहोशी की हालत में बच्चे के मुंह में कुछ न डालें.
  • मरीज के बिस्तर पर न बैठें और न ही उसे बेवजह तंग करें.
  • मरीज के पास बैठकर शोर न मचाएं.

सावधानी
गर्मी के मौसम में फल और खाना जल्दी खराब होता है. घरवाले इस बात का खास ख्याल रखें कि बच्चे किसी भी हाल में जूठे और सड़े हुए फल नहीं खाए. बच्चों को गंदगी से बिल्कुल दूर रखें. खाने से पहले और खाने के बाद हाथ जरूर धुलवाएं. साफ पानी पिएं, बच्चों के नाखून नहीं बढ़ने दें. बच्चों को गर्मियों के मौसम में धूप में खेलने से भी मना करें. रात में कुछ खाने के बाद ही बच्चे को सोने के लिए भेजें. डॉक्टरों की मानें तो इस बुखार की मुख्य वजह सिर्फ लीची ही नहीं बल्कि गर्मी और उमस भी है.

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