NEWSPR DESK- गया. बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. पितृपक्ष मेला 2 अक्टूबर तक चलेगा. विश्व विख्यात पितृ तीर्थ गया जी में गया पाल पंडों के पास सैकड़ो साल पुरानी बही खाता है. पुराने भोजपत्र और ताम्रपत्र भी हैं. जैसे-जैसे लिखावट का चलन ताम्रपत्र व भोजपत्र से बदला, तो वही खातों का चलन कागज के साथ शुरू हुआ. अब कागजी रूप में गयापाल पंडों के पास पिंडदानियों का बही खाता है, जो पांच साल तक पुराना है. हालांकि डिजिटल युग आया, किंतु कंप्यूटर के युग में भी बही खाता गयापाल पंडों ने संभालकर रखे हैं. इनका कहना है, कि गया तीर्थ की मर्यादा के रूप में एक बही खाता भी है.पिंडदानियों का सैकड़ो साल का बही खाता गया जी धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों का सैकड़ो साल का बही खाता है. गया पाल पंडों के पास यह अनोखा और आश्चर्य चकित कर देने वाला यह बही खाता मिल जाएगा. गया पाल पंडे इसे सावधानीपूर्वक बेहद संभाल कर रखते हैं. बताया जाता है, कि गयापाल पंडों के पास रहे बही खाते सैकड़ो सालों के मिल जाएंगे. वहीं, उसे भी पुराने खाते के रूप में भोजपत्र और ताम्रपत्र हैं. गयापाल पंडों के पास यह मिल जाएगा. गया तीर्थ अनोखा है, जहां सैकड़ो साल से पिंडदानियों के बही खाते संभाल कर रखे जा रहे हैं. आज भी गयापाल पंडे बही खाते को संभाल कर रखे हुए हैं.सालों भर पहुंचते हैं पिंडदानी, ऐसे आते हैं अपने संबंधित गयापाल पंडों के पास, नाम पता जिला बताते ही बही खाता हाजिर है.नाम पता गांव जिला बताना जरूरीयदि कोई व्यक्ति देश के किसी कोने से गया में पिंडदान करने आ रहा है और वह अपने गयापाल पंडे के बारे में जानकारी चाहता है और वहां उसे पहुंचना है, तो सबसे पहले उसे अपना नाम पता और जिले व राज्य से पता करना होगा, कि कौन गयापाल पंडा उनके पूर्वजों का पिंडदान कराते थे. तकरीबन हर जिले के गयापाल पंडों का क्षेत्र बंटा हुआ है. सैकड़ो साल साल पुराने अपने वंश के पिंडदानी के बारे में यदि किसी तीर्थयात्री को जानना है, तो अपने संबंधित गयापाल पंडा के यहां पहुंचना ही होगा. जिले और राज्य का नाम बताते ही संबंधित पंडा के बारे में उक्त तीर्थयात्री को काफी कुछ ज्ञात हो जाता है और फिर उसे संबंधित पंडे के घर पहुंच कर विस्तृत जानकारी लेते हैं. इस तरह तीर्थयात्री अपने संबंधित गयापाल पंडे के बारे में पता कर लेता है और वहां बही खाते में पूरी वंशावली का पता उसे मिल जाता है. तीर्थ यात्री न सिर्फ यहां अपने गयापाल पंडे से पिंडदान श्राद्ध का कर्मकांड करवाते हैं, बल्कि वहां उनके पास रहे बही खातों में अपने पूर्वजों की विवरणी देखते हैं. अपने पूर्वजों के नाम देखकर वे खुशी से झूम उठते हैं.
वह तब भावुक हो जाते हैं, जब यह अपने पूर्वजों का हस्ताक्षर देखते हैं, तब उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रह जाता.कोर्ट कचहरी भी देता है मान्यतायदि किन्हीं को वंशावली को लेकर काफी परेशानी हो रही है, तो यहां के वंशावली को मान्यता है. यहां के गयापाल पंडा बताते हैं, कि हमारे यहां जो वंशावली है, उसे उसे कोर्ट कचहरी भी मान्यता देते हैं.सैकड़ो साल पहले जो पिंंडदान किए हैं मिल जाएंगे उनके नाम और पूरी वंशावली सैंकङों साल पहले भी जो पिंडदान किए हैं, उनके नाम हस्ताक्षर वंशावली यहां मिल जाएंगे. गयापाल पंडा की ‘पंडा पोथी’ में सब कुछ दर्ज है. बड़ी बात यह है, कि यहां जो पिंडदान करने आते हैं, उन्हीं का गयापाल पंडों के पास बही खाता में नाम दर्ज होता है. यदि 200, 300 या 400 साल पहले जो भी आए, उनकी विवरणी यहां मिल जाती है. गांव जिला नाम पता बताते ही तुरंत गया पाल पंडे सब कुछ सामने लाकर रख देते हैं. पीढ़ियों की जानकारी मिलती चली जाती है. पूर्वज के नाम पता और हस्ताक्षर देखकर तीर्थयात्री के हर्ष का ठिकाना नहीं रहता है. ऐसे में आपको यदि पता करना है, कि उनके पूर्वज कौन थे, तो संबंधित गयापाल पंडे से संपर्क साधना होगा. क्योंकि इनके पास जिला से लेकर राज्य का बंटवारा रहता है और संबंधित गयापाल पंडे के क्षेत्र बंंटकर अलग-अलग रहते हैं.देश और विदेश की नामचीन हस्तियां पिंडदान को आ चुके हैं वही, देश और विदेश के नामचीन हस्तियां गयाजी धाम में पिंडदान करने को पहुंचे हैं. इसमें कुछ नाम का जिक्र करें, तो टिकरी महाराज गोपाल शरण, चंद्रकांता निर्माता नीरजा गुलेरी, अमित शाह , देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह, कस्तूरबा गांधी, मोरारजी देसाई, बूटा सिंह, मकसूदपुर के राजा अजय सिंह, अमावस स्टेट के महाराज, सिनेमा अभिनेत्री रवीना टंडन, अभिनेता धर्मेंद्र, हेमा मालिनी समेत कई बड़ी हस्तियां ऐसे हैं, जो यहां गया जी धाम में आकर पिंडदान कर चुके हैं.भावुक हो गए तीर्थयात्री सिद्धार्थ दास उड़ीसा के तीर्थयात्री सिद्धार्थ दास गयाजी धाम में पहुंचे. उड़ीसा के तीर्थयात्री सिद्धार्थ तब भावुक हो गए, जब वे अपने संबंधित गयापाल पंडा के यहां पहुंचे और गयापाल पंडा के बही खाते में अपने पूरे वंश का नाम देखा. 113 वर्ष पहले जो उनके पूर्वज आए थे, उनका नाम और दस्तखत का देखकर सिद्धार्थ दास भावुक हो गए. सिद्धार्थ दास ने बताया कि वह 16 शासन पुरी उड़ीसा के रहने वाले हैं. वह अपने पूर्वज के बारे में जानना चाहते थे, कि कोई पूर्वज यहां पिंडदान करने आए है या नहीं, इस बीच में संबंधित गयापाल पंडा के यहां जानकारी लेने पहुंचे, तो यहां पर जानकारी मिली कि 113 साल पहले उनके पूर्वज यहां पिंडदान करने को आ चुके हैं. कई पूर्वजों के नाम हमने देखे. उनके दस्तखत देख हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है.सिद्धार्थ दास, उड़ीसा के तीर्थयात्री.बही खाता पुरानी प्रथा-प्रचलन और गया तीर्थ की मर्यादा है वही, इस संबंध में गयापाल पंडा गजाधर लाल कटरियार बताते हैं, कि बही खाता पुरानी प्रथा और प्रचलन एवं गया तीर्थ की मर्यादा है. हमारे तीर्थयात्री आते हैं, जिनके वंशावली खो जाते हैं, उनके सभी वंश के लोगों के नाम हमारे बही खाते में मिल जाएंगे. जिनके यहां तीर्थ यात्री के पूर्वज आए, तीर्थ यात्री उन्हीं के यहां पिंडदान करते हैं, ऐसी धार्मिक परंपरा है. इसे लेकर भी हम लोग बही खाता सुरक्षित रखते हैं. कब और किस समय तीर्थ यात्री के पूर्वज आए बही खाते में लिखा रहता है.
पूर्वजों का दस्तखत जिस तीर्थ यात्री ने नहीं देखे, लेकिन हमारे यहां आकर उसे भी देख लेते हैं. तीर्थयात्री हमारे यहां पिंडदान श्राद्ध करने आते हैं, जब वह बही खाते में अपने पूर्वजों का नाम दस्तखत देखते हैं, तो उन्हें हर्ष होता है. उन्हें खुशी उत्पन्न होती है, कि 200 साल पहले हमारे पिता ऐसे होते थे और उनके दस्तखत इस तरह के हुआ करते थे. हमारे यहां सैकड़ो साल पुराने बही खाते हैं. वही, भोजपत्र और ताम्रपत्र भी मौजूद हैं. राजा रजवाड़े के समय के भी भोजपत्र ताम्रपत्र हमारे पास मौजूद हैं. चलन के अनुसार परंपरा बदली, लेकिन बही खाते को हमने नहीं बदला, क्योंकि यह गया तीर्थ की मर्यादा है. कई राजा महाराजा और प्रजा आए, सनातनी अन्य प्रदेशों से आए, सभी के पूर्वजों का बही खाता हमारे पास मौजूद है. इसे कोर्ट भी मान्यता देता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है, कि ऋषि महर्षि पिंडदान को आए. भोजपत्र और ताम्रपत्र के रूप में भी बही खाता हमारे यहां मौजूद हैं. किसी तीर्थ यात्री को अपने संबंधित गयापाल पंडा का पता करना होता है, तो वह अपना नाम पता जिले और राज्य के बारे में बताते हैं, इसके बाद वह खुद पता करते हुए अपने गयापाल पंडा के पास पहुंच जाते हैं और फिर उनसे पिंडदान का कर्म कांड करवाते हैं. इस तरह गया जी तीर्थ में लाखों लाख तीर्थ यात्रियों को बही खाते ने जोड़ रखा है. वही, उनके पूर्वजों के नाम और हस्ताक्षर को भी संभाल कर रखा है. सभी जिले के अलग-अलग गयापाल पंडे होते हैं. इस तरह नाम पता बताते ही यदि आपके पूर्वज यहां आए हैं, तो उनके बारे में पूरी विवरणी मिल जाती है. गजाधर लाल कटरियार, गया पाल पंडा.