NEWSPR डेस्क। महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को हुआ था और निधन 28 नवंबर, 1890 को हुआ था। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। महात्मा ज्योतिबा फुले के पिता गोविंद राव एक किसान थे और पुणे में फूल बेचते थे। जब ये छोटे थे इनकी मां का देहांत हो गया था। ज्योतिबा फुले समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी के रुप में जाने जाते हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले ने जाति भेद, वर्ण भेद, लिंग भेद,ऊंच नीच के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी। यही नहीं उन्होंने न्याय व समानता के मूल्यों पर आधारित समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की।
वे महिला शिक्षा की खूब वकालत करते थे। यही वजह है कि 1840 में जब इनका विवाह सावित्रीबाई फुले से हुआ तो, उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को पढऩे के लिए प्रेरित किया। सन 1852 में उन्होंने तीन स्कूलों की स्थापना की, लेकिन 1858 में फंड की कमी के कारण ये बंद कर दिए गए। सावित्रीबाई फुले आगे चलकर देश की पहली प्रशिक्षित महिला अध्यापिका बनीं। उन्होंने लोगों से अपने बच्चों को शिक्षा जरूर दिलाने का आह्वान किया था। स्वार्थ अलग-अलग रूप धारण करता है. कभी जाती का रूप लेता है तो कभी धर्म का भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा.
जब तक खान -पान एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर जातीय बंधन बने रहेंगे। महात्मा ज्योतिबा राव फुले अच्छा काम पूरा करने के लिए बुरे उपाय से काम नहीं लेना चाहिये। आर्थिक असमानता के कारण किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है शिक्षा स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है। भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और कार्यकर्ता ज्योतिराव गोविंदराव फुले की पहचान ‘महात्मा फुले’ और ‘ज्योतिबा फुले’ के नाम से जाना जाता है। सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था बनाई। महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने बहुत से काम किए. समाज के सभी वर्गो को शिक्षा देने के ये प्रबल समथर्क थे. वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के घोर विरोधी थे।