NEWSPR डेस्क। आज शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इस मौके पर जे डी यू- ट्रेडर्स प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव ने मां के भक्तों को शुभकामनाएं दी है। उन्होंने कहा कि मां कुष्मांडा की भक्ति से रोग-शोक मिट जाते हैं और आयु, यश, बल और आरोग्यता में वृद्धि होती है।
देवी कूष्मांडा की पूजा का महत्व : नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है. जो व्यक्ति शांत और संयम भाव से मां कुष्मांडा की पूजा उपासना करता है उसके सभी दुख होते हैं. निरोगी काया के लिए भी मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. देवी कूष्मांडा भय दूर करती हैं और इनकी पूजा से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. देवी कूष्मांडा अपने भक्तों के हर तरह के रोग, शोक और दोष को दूर करती हैं. इन दिन देवी कुष्मांडा को खुश करने के लिए मालपुआ का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।
मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी : देवी कूष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व होता है क्योंकि ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कूष्मांडा देवी अनाहत च्रक को नियंत्रित करती हैं. इनकी आठ भुजाएं है और इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व भी था तब इन्हीं देवी अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी और इनका एक नाम आदिशक्ति भी है।
मां कूष्मांडा का स्वरूप : मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां सिंह का सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं।
कूष्माण्डा मां की कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्माण्डा का मतलब कुम्हड़ा से है। ऐसी मान्यता है मां कूष्माण्डा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए अवतार लिया था। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्माण्डा नाम से जाना गया। जब सृष्टि नहीं हुई थी और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
मंत्र : या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।