राजधानी पटना में मेट्रो सेवा को शुरू हुए एक महीने से ज्यादा वक्त हो गया है। शुरुआती दिनों में शहर और आसपास के जिलों से लोग नई मेट्रो की सवारी का अनुभव लेने के लिए पहुंच रहे थे। स्टेशन पर सेल्फी, टिकट काउंटर पर लंबी कतारें और बच्चों की खुशियां—सब कुछ मेट्रो की नई शुरुआत को खास बना रहा था।
लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं हैं। सीमित रूट और केवल तीन स्टेशनों के कारण यह प्रोजेक्ट फिलहाल यात्रियों के लिए आकर्षण से ज़्यादा एक प्रयोग बनकर रह गया है।
पहले हफ्ते में भीड़, अब सन्नाटा
शुरुआती हफ्ते में मेट्रो को देखने और चलने के लिए हजारों लोग पहुंचे थे। मगर अब स्थिति बदल गई है। मेट्रो टिकट काउंटरों पर भीड़ कम हो गई है और ट्रेनों में खाली सीटें नज़र आ रही हैं।
मेट्रो प्रशासन के मुताबिक फिलहाल प्रतिदिन करीब 1500 यात्री ही यात्रा कर रहे हैं, जिससे औसतन 42 से 45 हजार रुपये की दैनिक आय हो रही है।
रविवार को यह संख्या कुछ बढ़ जाती है, जब परिवार और छात्र इसे वीकेंड आउटिंग के तौर पर लेते हैं।
छोटा रूट, सीमित सफर
फिलहाल मेट्रो आईएसबीटी से भूतनाथ स्टेशन तक 4.5 किलोमीटर लंबे रूट पर चल रही है। इस रूट में जीरो माइल, भूतनाथ रोड और पाटलिपुत्र बस डिपो (आईएसबीटी) स्टेशन शामिल हैं।
अधिकतम किराया 30 रुपये और न्यूनतम 15 रुपये रखा गया है।
लेकिन सीमित दूरी और स्टेशन की संख्या कम होने की वजह से रोजाना सफर करने वाले यात्रियों की संख्या नहीं बढ़ पा रही है।
यात्रियों का कहना है — “जब तक रूट सेंट्रल पटना या गांधी मैदान तक नहीं पहुंचेगा, मेट्रो को नियमित सवारी मिलना मुश्किल है।”
12 घंटे संचालन, 42 फेरे रोजाना
मेट्रो सेवा सुबह 7:55 बजे से शाम 7:55 बजे तक चलती है। हर दिन करीब 42 फेरे पूरे किए जा रहे हैं।
तीन कोच वाली यह ट्रेन 138 बैठे और 945 खड़े यात्रियों की क्षमता रखती है। तीन फुट से कम ऊंचाई वाले बच्चों को मुफ्त यात्रा की सुविधा दी गई है, जबकि उससे अधिक ऊंचाई वाले बच्चों को टिकट लेना पड़ता है।
शहर की पहचान बनी, पर अभी जरूरत नहीं
फिलहाल पटना मेट्रो लोगों के लिए एक नई और दिलचस्प सवारी बनकर उभरी है, लेकिन सीमित दायरे और शहर के मुख्य इलाकों से दूरी के चलते यह अभी दैनिक जरूरत नहीं बन पाई है।
स्थानीय लोगों का मानना है — “जब तक मेट्रो गांधी मैदान, रेलवे स्टेशन या डीएनए रोड तक नहीं जाएगी, इसका असली फायदा नहीं दिखेगा।”
फेज-2 से उम्मीदें
अब सभी की नजरें मेट्रो के फेज-2 पर टिकी हैं, जो राजधानी के मध्य और दक्षिणी हिस्सों को जोड़ेगा। यही विस्तार तय करेगा कि मेट्रो शहर के रोजमर्रा सफर का हिस्सा बन पाती है या नहीं।
फिलहाल, पटना मेट्रो ने शहर को आधुनिक परिवहन का नया चेहरा जरूर दिया है — लेकिन ‘शहर की सैर’ से ‘शहर की जरूरत’ बनने तक का सफर अभी बाकी है।