NEWSPR DESK- 17 सितंबर से पितृपक्ष मास की शुरुआत हो रही है. पितृपक्ष मास में पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण आदि किया जाता है. पितृपक्ष के पहले दिन पटना जिले की पुनपुन नदी में स्नान कर पिंडदान का विधान है. मान्यता के अनुसार पितरों का गयाजी में पिंडदान करने से पहले यहां पिंडदान करना जरूरी होता है. पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है.
पिंडदानी पुनपुन नदी में श्राद्ध करने के बाद गया के लिए रवाना होते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि किन्हीं कारणों से पिंडदानी पुनपुन में पिंडदान नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर कोई श्रद्धालु सीधे गयाजी आते हैं तो वे यहां के गोदावरी तालाब में पिंडदान के साथ त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू करते हैं. मान्यताओं के अनुसार पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किए थे, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता है.
इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था. त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले श्रद्धालु पटना के पुनपुन या गया के गोदावरी से कर्मकांड शुरु करते हैं. वैसे तो गया शहर में सालभर पिडंदानी आते हैं, लेकिन पितृपक्ष माह में पिंडदान करने का विशेष महत्व है. पितृपक्ष पखवारे में मुख्य रूप से पांच तरह के कर्मकांड का विधान है, जिसमें 1, 3 ,7 और 17 दिन का पिडंदान होता है. 17 दिन का पिडंदान को त्रिपाक्षिक पिंडदान कहा जाता है.