पुलिस का सूचना तंत्र फ़ेल, तीसरी आंख को मोतियाबिंद

Sanjeev Shrivastava

NEWSPR डेस्क। इंडिगो एयरलाइन्स के स्टेशन हेड रूपेश सिंह की हत्या ने भले ही पटना पुलिस और शासन-प्रशासन का बैंड बजा दिया हो, लेकिन हकीकत ये है कि इससे पहले भी कई घटनाएं हुईं, जिसके उद्भेदन में बिहार पुलिस अक्षम साबित हुई है। कारण ये भी है कि पुलिस के पास अब सूचना तंत्र नहीं बचा।

अब पुलिस के पास मुखबिर नहीं बचे। क्योंकि, न तो पैसा मिलता है और न ही सुरक्षा। मुखबिर के नाम पर कुछ शराब तस्कर और जुए के अड्डे चलाने वाले ही बचे हैं। जो अपनी रोटी सेंकने के लिए, प्रतिद्वंदियों की खबर और नजराना थाने तक पहुंचाते रहते हैं। घटना के बाद वरदातस्थल पर मजमा लगाना, फ़ोटो फ्रेम में नजर आना, कार्यशैली में शुमार हो गया है। तफ्तीश सीसीटीवी कैमरों तक सिमट कर रह गई है।

अब जमे-मंझे हुए अधिकारी और जवान भी नहीं है, जो हुलिया देखकर अपराधी की पहचान कर सकें। पुलिस के कैमरे कोने-कोने तक तो हैं नहीं। सूत्रों की माने तो वारदात के बाद आसपास घरों और निजी प्रतिष्ठानों में लगे सीसीटीवी कैमरों को खोजने लगती है। पुलिस के पचड़े में फंसने के डर से लोग डीवीआर भी नहीं देते। कुछ लोगों ने पुलिस को मदद की थी, उनका कहना है कि पुलिस डीवीआर उठा कर ले गई पर वापस नहीं की।

तीन-चार बार थाने में दौड़ने के बाद कहा गया कि एसपी साहब के पास है, वहां मांगिये। फिर, उनसे मुलाकात में घंटों इंतजार किया और नतीजा सिफर रहा तो जाना ही छोड़ दिया। लिहाजा, तीसरी आंख में भी मोतियाबिंद हो गया।

पटना से विक्रांत की रिपोर्ट…

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