बिहार में स्कूली बच्चे आज से हर शनिवार बिना बैग के स्कूल करेंगे इंज्वॉय, सरकार ने चालू कर दी ‘बैगलेस सेफ सैटरडे’ योजना

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। पटना बिहार में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अब सप्ताह में केवल पांच दिन स्कूल बैग ले जाना होगा, क्योंकि राज्य सरकार ने ‘शिक्षा दिवस’ के अवसर पर शुक्रवार को ‘बेगलेस सेफ सैटरडे’ योजना की शुरुआत की। ये योजना देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती पर शुरू की गई। सीएम नीतीश कुमार ने औपचारिक रूप से ‘बैगलेस सेफ सैटरडे’ योजना का शुभारंभ किया। इस अवसर पर सीएम नीतीश ने एक कार्यक्रम में इसके दिशानिर्देशों की एक पुस्तक का भी अनावरण किया। उन्होंने एक ‘बेस्ट प्लस एप’ भी लॉन्च किया, जिसका इस्तेमाल शिक्षा विभाग के अधिकारी करेंगे। इस ऐप से राज्य भर के 80,000 से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में गतिविधियों की वास्तविक निगरानी और ट्रैकिंग और शिक्षकों की उपस्थिति के लिए किया जाएगा। सीएम ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए शिक्षा विभाग की विभिन्न योजनाओं के तहत डीबीटी के माध्यम से छात्रों के बैंक खाते में प्रोत्साहन राशि भी हस्तांतरित की।

अब बिहार में हर शनिवार ‘बैगलेस सैटरडे’
‘बैगलेस सेफ सैटरडे’ योजना आज यानि (12 नवंबर) से ही लागू हो गई है। अब प्रत्येक शनिवार को छात्रों को किताबें ले जाने की आवश्यकता नहीं है।ये दिन व्यावहारिक, अनुभवात्मक सीखने, खेल, गायन, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समर्पित होगा। राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर ने टाइम्स न्यूज नेटवर्क को बताया। इस दौरान नीतीश ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से उन सभी शिक्षकों को ‘नौकरी से बर्खास्त’ करने को कहा जो छात्रों को ठीक से पढ़ाने में रुचि नहीं लेते हैं। उन्होंने उन शिक्षकों के वेतन में वृद्धि करने के भी आदेश दिए जो नियमित रूप से कक्षाएं लेते हैं और छात्रों को ठीक से पढ़ाते हैं।

नीतीश ने बताया अपने कॉलेज के दिनों का अनुभव
पटना स्थित तत्कालीन बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी-पटना) के छात्र के रूप में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए, नीतीश ने कहा, ‘जब हम इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते थे, तब हमारी कक्षा में कोई लड़की नहीं थी …. जब भी हमारे कॉलेज परिसर में कोई भी महिला आती थी, छात्र उसे देखने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा होते थे। अब देखिए कितनी लड़कियां स्कूलों में पढ़ रही हैं, यहां तक कि इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में भी।’

Share This Article