बुधवार को बिहार विधानसभा के मानसून सत्र का तीसरा दिन भी खासा हंगामेदार रहा। सदन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच जोरदार बहस हुई। मुद्दा था—राज्य में चल रहा मतदाता सूची पुनरीक्षण, जिसे तेजस्वी यादव ने “अलोकतांत्रिक और पक्षपातपूर्ण प्रक्रिया” बताया।
तेजस्वी बोले – चुनाव आयोग का काम नागरिकता साबित करना नहीं
तेजस्वी यादव ने विधानसभा में कहा कि चुनाव आयोग का मूल कार्य निष्पक्ष चुनाव कराना है, न कि मतदाताओं से उनकी नागरिकता सिद्ध कराना। उन्होंने आरोप लगाया कि पुनरीक्षण प्रक्रिया के जरिए गरीबों और खास वर्गों को मतदान से वंचित करने की साजिश की जा रही है।
नीतीश कुमार का पलटवार – अपने माता-पिता के शासन को देखिए
तेजस्वी के आरोपों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “पहले अपने माता-पिता (लालू-राबड़ी) के शासन की स्थिति को याद कीजिए। उस समय महिलाएं शाम को पटना की सड़कों पर निकलने से डरती थीं। हमने न सिर्फ सुरक्षा बहाल की, बल्कि महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया, मुस्लिम समुदाय के लिए भी कई योजनाएं चलाईं।”
नीतीश कुमार ने आगे कहा, “अब राज्य का बजट तीन लाख करोड़ से भी अधिक है। हमने चारों तरफ विकास कार्य किए हैं। तीन दिन में यह सत्र समाप्त होगा और फिर चुनाव होंगे—तब जनता तय करेगी किसने क्या किया।”
राजद विधायक भाई वीरेंद्र की टिप्पणी से सदन में बवाल
विवाद यहीं नहीं थमा। जब तेजस्वी यादव दोबारा बोलने के लिए खड़े हुए, तभी राजद विधायक भाई वीरेंद्र की एक टिप्पणी ने सदन में तूफान खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, “यह सदन किसी के बाप का नहीं है।” इस पर विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव भड़क उठे और भाई वीरेंद्र को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सदन में इस तरह की अभद्र भाषा को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही स्थगित
भाई वीरेंद्र की टिप्पणी के बाद सदन में काफी देर तक हंगामा चलता रहा। अंततः विधानसभा अध्यक्ष ने कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दिया।