सीबीएसई के फॉर्मूल से खुश नहीं छात्र, सुप्रीम कोर्ट पहुंचे 1152 याचिकाकर्ता

Patna Desk

12वीं कक्षा के 1152 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर परीक्षा न कराने की मांग की है। इन छात्रों में कंपार्टमेंट, ड्रॉपआउट और कई सालों से 12वीं की पीरक्षा पास करने की कोशिश कर रहे छात्र शामिल हैं। इन छात्रों ने कहा है कि उनके लिए भी सरकार को नीति बनानी चाहिए और परीक्षा लेने की बजाय बाकी छात्रों के साथ उनका भी रिजल्ट जारी किया जाना चाहिए। इन छात्रों ने सरकार को कुछ सुझाव देते हुए कहा है कि उनके साथ हो रहा भेदभाद समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

 

क्या है बोर्ड का फॉर्मूला

 

12वीं का रिजल्ट बनाने के लिए सरकार ने 30:30:40 फॉर्मूला अपनाया है। यानी 10वीं और 11वीं कक्षा के फाइनल रिजल्ट को 30-30% वेटेज दिया जाएगा और 12वीं कक्षा के प्री बोर्ड एग्जाम को 40% वेटेज देते हुए छात्र का परिणाम जारी कर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कक्षा 10 (30% वेटेज), कक्षा 11 (30% वेटेज) और कक्षा 12 (40% वेटेज) में प्रदर्शन के आधार पर 12वीं के अंक तय किए जाएंगे। हालांकि, इस फॉर्मूले में कंपार्टमेंट और ड्रॉपआउट छात्रों के लिए कुछ भी नहीं कहा गया है और बोर्ड ने कहा है कि इन छात्रों को परीक्षा देनी पड़ेगी। तभी इनका रिजल्ट जारी होगा।

 

मनु जेटली ने दाखिल की याचिका

 

देश भर के साढ़े ग्यारह सौ से ज्यादा छात्रों ने वकील मनु जेटली के जरिए अपनी याचिका कोर्ट में दाखिल की है। इसमें कंपार्टमेंट, पिछले कई सालों से पास होने की उम्मीद में इम्तिहान देने वाले, पत्राचार से बारहवीं करने वाले, ड्रॉप आउट और प्राइवेट छात्र शामिल हैं। इस याचिका में परीक्षा देने वाले छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों आदि की स्वास्थ्य सुरक्षा सहित सभी जरूरी इंतजाम को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।

 

17 जून को तय हुआ था फॉर्मूला

 

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए 3 जून को CBSE से पूछा गया था कि कोरोनाकाल में परीक्षा कराने को लेकर बोर्ड का क्या प्लान है। इसके जवाब में बोर्ड ने 17 जून को 30:30:40 का फार्मूला दिया था, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर दिया था। इस फॉर्मूले के जरिए उन छात्रों का रिजल्ट नहीं बन सकता, जो पिछले 11वीं में नहीं थे। इस वजह से इन छात्रों की परीक्षा ली जा रही है। छात्रों ने इस परीक्षा को रद्द कराने के लिए याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि ये संविधान में दिए गए समानता के अधिकारों के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

 

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