झारखंड-बिहार में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट का फैसला खारिज

Patna Desk

NEWSPR डेस्क। झारखंड-बिहार में कैडर बंटवारे के बाद आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। कोर्ट ने कहा है कि बिहार विभाजन के फलस्वरूप कैडर बंटवारे के बाद भी आरक्षण का लाभ बरकरार रहेगा, लेकिन कर्मियों को लाभ सिर्फ एक राज्य (बिहार या झारखंड) में ही मिलेगा। मतलब साफ है कि कैडर बंटवारे के बाद झारखंड आनेवाले कर्मियों को जो बिहार के मूल निवासी हैं, उन्हें झारखंड में भी आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसी प्रकार बिहार आनेवाले कर्मी जो झारखंड के मूल निवासी हैं, उन्हें बिहार में भी आरक्षण मिलेगा, लेकिन इन कर्मियों को दोनों में से किसी एक राज्य में ही आरक्षण को लाभ मिल सकता है। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि न सिर्फ कर्मियों को बल्कि उनके बच्चों को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया. 31 जुलाई को एसएलपी पर सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रार्थी पंकज कुमार को छह हफ्ते के अंदर 2007 के विज्ञापन संख्या-11 के आधार पर चयन के परिप्रेक्ष्य में नियुक्त किया जा सकता है. साथ ही वे वेतन के भत्तों के वरीयता के भी हकदार हैं. कोर्ट ने कहा कि कांस्टेबलों (आरक्षी) की कोई गलती नहीं है. पहले उनकी नियुक्ति की गयी, फिर हटाया गया. इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। संविधान की धारा-142 का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कांस्टेबलों को नौकरी में रखने का आदेश दिया।

दरअसल, प्रार्थी अनुसूचित जाति के सदस्य पंकज कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करते हुए झारखंड हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। राज्य सिविल सेवा परीक्षा 2007 में उन्हें इस आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया गया था कि उनका पता दिखाता है कि वह बिहार के पटना के स्थायी निवासी हैं।

खंडपीठ ने कहा कि 24 फरवरी 2020 के झारखंड हाइकोर्ट के बहुमत से दिया गया फैसला कानून में अव्यावहारिक है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है. पीठ ने कहा कि सिद्धांत के आधार पर हम अल्पमत फैसले से भी सहमत नहीं हैं। स्पष्ट किया कि व्यक्ति बिहार या झारखंड दोनों में से किसी एक राज्य में आरक्षण के लाभ का हकदार है, लेकिन दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता है और अगर इसे अनुमति दी जाती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 341 (1) और 342 (1) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।

इससे पहले सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता सुमित गड़ोदिया ने पक्ष रखा जबकि केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से झारखंड हाइकोर्ट के बहुमत के फैसले का समर्थन करते हुए बताया गया कि दूसरे राज्य के मूल निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

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