NEWSPR डेस्क। पटना आरक्षण को लेकर नगर निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट के फैसले के ग्रहणोपरांत अब चुनाव लंबा खींचने के आसार हैं। राज्य निर्वाचन आयोग अब नए सिरे से चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। इस बीच नीतीश सरकार निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। इस दौरान आयोग की हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि नए सिरे से नगर निकाय चुनाव की तैयारी की जाएगी। आयोग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसमें कम से कम तीन से चार महीने समय लग सकता है। हालांकि, कोशिश यह है कि दिसंबर के अंत तक चुनाव प्रक्रिया पुनः निर्धारित कर लिये जाए। दूसरी ओर राज्य सरकार अतिपिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
गौरतलब है कि बिहार के 224 नगर निकायों में दो चरणों में आम चुनाव कराने की तैयारी की गई थी। पहले चरण का मतदान 10 अक्टूबर को होना था, जबकि दूसरे चरण का 20 अक्टूबर को निर्धारित था। दोनों चरणों के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी थी। इस बीच 4 अक्टूबर को पटना हाईकोर्ट ने आरक्षण विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि बिहार में निकाय चुनाव के लिए सीटों के आरक्षण का जो फैसला लिया गया है वह गलत है। जिन सीटों को अन्य पिछड़ा के लिए निर्धारित करने का फैसला लिया गया, वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है। अब सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला होगा, उस पर काफी कुछ चुनाव आयोग पर निर्भर करेगा। हालांकि, माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट से नीतीश सरकार को कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए ही फैसला सुनाया था।
चुनाव के अब दो ही विकल्प : चुनाव पर बड़ा ग्रहण लगने के बाद भी राज्य में अभी तक आदर्श आचार संहिता जारी है गुरुवार को आयोग की उच्चस्तरीय बैठक में इसे हटाए जाने को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया था। आयोग के स्तर पर आगे इस पर विचार किया जाएगा। पटना उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राज्य में नगर निकाय चुनाव को लेकर अब दो ही तरह के विकल्प बचे हैं-
पहला- अन्य पिछड़ों के लिए घोषित सीटों को (अनारक्षित) सामान्य घोषित करते हुए नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया पूरी किया जाए।
दूसरा- सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का पालन करते हुए आयोग गठित करके ट्रिपल लेयर टेस्ट की प्रक्रिया पूरी कर आरक्षण पर कोई भी फैसला लिया जाए। इसके बाद ही राज्य के पिछड़े लोगों की सही गणना हो सकेगी और उनके सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति का सही पता चल सकेगा। तब सभी सूचनाएं इकट्ठा कर सीटों को आरक्षित किया जाए।