मुंगेर के कच्ची कांवरिया पथ पर एक खास तरह की फलों वाली जलेबी बनाई जाती है जिसे खाने के लिए लोगों को एक वर्ष का इंतजार करना पड़ता है । यह जलेबी कच्ची कांवरिया पथ के अलावा अन्य दुकानों पर नहीं मिलता है, इसे विशेष रूप से सावन महीने में बाबाधाम जाने वाले कांवरियों के लिए बनाया जाता है ।
और अगर आपको भी केला और आलू से बने जलेबी को खाना है तो आपको मुंगेर के कच्ची कांवरिया पथ पर आना ही होगा । इस पथ पर कुछ ही होटलों में ही चखने को मिलेगा यह जलेबी । अन्य जलेबियों की तरह इसे मैदा या कलाई के दाल से नहीं बल्कि आलू केला और दूध को मिक्स कर बनाया जाता है । इस जलेबी को बनाने का मुख्य उद्देश्य होता है कि कांवरिया जो कि फलाहार पे ही बाबाधाम जाते है । उसने लिए फलों के अलावा यह जलेबी खाने का बेहतरीन ऑप्शन बन जाता है । दुकानदार मंगल सिंह और कारीगर धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि यह जलेबी पूरी तरह से शाकाहारी होने के साथ-साथ फलाहारी भी है । कांवर यात्रा में जो शिव भक्त या अन्य लोग व्रत रखते हैं वो फलाहार के रूप में बेफिक्र हो कर इस जलेबी को खा सकते हैं । कांवरिया पथ के होटल में यह जलेबी उपलब्ध है। इसे केला आलू आरारोट ड्राई फ्रूट दूध को मिक्सी में पीस उसका घोल बना तेल में तल गरमागरम चासनी में डाल कांवरियों को परोसा जाता है । एक पीस आलू और केला जलेबी की कीमत 20 रुपये है ।
गरमागरम चासनी में डूबी जलेबी का स्वाद ले रहे कांवरिया अखिलेश द्विवेदी , आशीष पांडे और अभय राय कांवरियों , सहित कई शिव भक्तों ने आलू और केला के मिश्रण से बने जलेबी की खूब प्रशंसा करते हुए बताया कि व्रत में बाबा को जल चढ़ाने देवघर बैद्यनाथ धाम जा रहे हैं । रास्ते में फलाहार करने के लिए फल को छोड़ कुछ नहीं मिलता था, लेकिन बीते कुछ वर्षों से आलू और केला को मिक्स कर बनने वाला जलेबी हमारे लिए बेहतर ऑप्शन है । हमलोग इस बेफ्रिक हो कर खाते हैं। इसे खाने से शरीर को थोड़ी इनर्जी मिल जाती है और मन तरो-ताजा हो जाता है । खाने में इसका स्वाद अन्य जलेबियों से काफी निराला होता है ।