NEWSPR डेस्क। ख़बर पश्चिम चंपारण ज़िला के रामनगर से है। जहां सूबे के सबसे सुदूर इलाके में आदिवासी महिलाएं मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहीं है। महिलाओं का समूह अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ रहा है। जीविका दीदी औऱ राष्ट्रीय बागवानी मिशन इनके लिए वरदान साबित हो रहा है ।
जंगल और पहाड़ों के बीच दुर्गम दोन के इलाके में मशरूम की खेती कर दर्ज़नों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। कहते हैं न, हौसले बुलंद हो तो मुश्किलें खुद-ब-खुद आसान हो जाती है। जी हां कुछ ऐसा ही हुआ है नेपाल के तराई क्षेत्र दोन के गांवों में जहां घर की दहलीज और चूल्हे के धुंए से बाहर निकल महिलाएं, आत्मनिर्भरता की स्वर्णिम गाथा लिख रही हैं।
दोन की महिलाएं घर बैठे मशरूम उत्पादन की प्रशिक्षण ले रही हैं और तब मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। इंडो नेपाल के तराई क्षेत्र दोन में दर्जनों महिलाओ को मशरूम कि खेती का प्रशिक्षण दिया गया है और अब इन्हें घर बैठे रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाने की क़वायद सरकारी स्तर पर तेज़ है।
नौरंगिया दोन की महिलाओं ने बताया कि पहले मजदूरी करते थे और उसी से अपना जीवन यापन चलाते थे लेकिन आज राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत बड़े पैमाने पर मशरूम कि खेती कर प्रति दिन एक हज़ार से ज्यादा प्रति महिला मुनाफा कमा रहीं हैं। जब कि यहां गाँव में ही SSB या पुलिस विभाग में 150 रूपये प्रति किलो मशरूम बिकता है।
अगर इसकि बिक्री शहरों तक होती तो गांव के लोगों को और ज्यादा मुनाफा हो सकता है। लिहाजा ज़रूरत अब बाज़ार तक पहुंचने का है, तब जाकर महिलाओं के रोजगार को परवान चढ़ने में पंख लगेगा। वहीं रामनगर के क़ृषि पदाधिकारी प्रदीप कुमार तिवारी ने बताया कि यह योजना सम्पूर्ण बिहार के लिए है लेकिन चंपारण में नौरिंगिया दोन पंचायत के 2 गावं फ़िलहाल इसे चलाया जा रहा है और मशरूम कि खेती के लिए सरकार ने अनुदान भी दे रखा है जो घर बैठे रोजगारपरक बनाने में मिल का पत्थर साबित हो रहा है।
बगहा से नूरलैन अंसारी की रिपोर्ट