” मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला ” .. साल भर पहले का वो एनकाउंटर जिसने उत्तर प्रदेश की प्रशासन से लेकर सियासत पर कई सवालिया निशान छोड़ दिए

Patna Desk

NEWSPR / DESK : अपराध के साये में पनपता कानपुर का बिकरू गांव कानपुर मुख्य शहर से करीब 40 किलोमीटर की दुरी पर था l वहां अपराध की अपनी ही एक दुनिया थी और उस दुनिया का अकेला बादशाह था गैंगस्टर विकास दुबे l लूट, डकैती, हत्या, अपहरण जैसे संगीन अपराधों में लिप्त होने पर भी राजनीतिक संरक्षण में विकास दुबे अपने अपराधों की पटकथा लिख रहा था l

यूँ तो कहने के लिए 2020 कोरोना महामारी के लिए हमेशा याद रखा जायेगा लेकिन बिकरू में आपराधिक महामारी का बोलबाला था. इस आपराधिक महामारी को जड़ से खत्म करने के लिए 2-3 जुलाई की दरमियानी रात सीओ देवेंद्र मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस टीम ने बिकरू गांव में धावा बोला l लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था, पुलिस विभाग के किसी विभीषण ने विकास दुबे को इस एक्शन की जानकारी पहले ही देकर उसे सावधान कर दिया l

 

एक साथ तीन थानों का फोर्स पूरी तैयारी के साथ रात के अंधेरे में विकास दुबे को दबोचने पहुंचा. थाने के सबसे छोटे पद से लेकर डिप्टी एसपी रैंक तक के अधिकारी छापेमारी करने पहुंचे थे, छापेमारी करने गई टीम में अधिकांश पुलिसकर्मी पहली बार ही बिकरू से रूबरू हुए थे l

बिकरू गांव में जैसी ही पुलिस पहुंची गांव का नजारा हैरान करने वाला था, पूरा गांव अंधेरे में डूबा हुआ था l गांव के अंदर जाने के लिए पुलिस की टीम आगे बढ़ी लेकिन सामने जेसीबी मशीन खड़ी थी. रास्ता इतना संकरा कि गाड़ी तो दूर की बात थी पुलिस वाले पैदल भी बड़ी मुश्किल से ही आगे बढ़े l जेसीबी मशीन को पार कर पुलिस वाले एक एक कर आगे बढ़ने लगे l

 

अपराधियों के खात्मे का हौसला अंधकार को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा था l थोड़ी दूर चलकर पुलिस की टीम गैंगस्टर के घर के कोने तक पहुंच गयी. यहां पुलिसकर्मी ने विकास दुबे के छत पर टॉर्च मारी. टॉर्च की रौशनी जैसे ही बदमाशों तक पहुंची, चारो तरफ से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई. गोलियों की बारिश और भीषण अंधकार के बीच पुलिस के जांबाज अपनी रक्षा के लिए इधर-उधर भागने लगे, गोलियों की गड़गड़ाहट के बीच जिसे जहां पनाह मिली वो अपनी जान बचाने के लिए छिप गया l पहली बार में ही बदमाशों ने 20-22 राउंड फायरिंग शुरू कर दी l

 

अंधाधुंध फायरिंग की ऐसी वारदात शायद ही किसी ने कभी देखी होगी या सुनी होगी l कानपुर के बिकरू गांव में उस रात सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र, एसओ शिवराजपुर महेश यादव, एक सब इंस्पेक्टर और 5 सिपाही शहीद हो गए. यही नहीं एसओ बिठूर समेत 4 पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल भी हुए. सुबह जैसे ही 8 जांबाजों के शहादत की खबर मिली, सबकी आंखे क्रोध से लाल हो गईं.

अपने साथियों के शहादत का बदला लेने के लिए पूरे सूबे की पुलिस गैंगस्टर विकास और उसके साथियों की तलाश में जुट गई, लेकिन बड़ा सवाल अब भी यहीं था कि बदमाशों को पुलिस के आने की खबर किसने दी? ये जांच के मुख्य विषयों में था, धीरे-धीरे चिट्ठे खुलते गए और खाकी ही खाकी के खिलाफ सवालों के कटघरे में खड़ी हो गई. कई पुलिसवालों पर मुखबिरी का आरोप लगा जिसमें मुख्य आरोपी चौबेपुर थाने के एसओ विनय तिवारी रहे और उनकी गिरफ्तारी हुई l

 

इस घटना के बाद विकास के गैंग का शार्प शूटर अमर दुबे का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा l अमर विकास के बेहद करीब था l आखिरकार उस खूनी रात का सबसे खूंखार हत्यारा अमर यूपी के हमीरपुर में पुलिस की पकड़ में आ गया और पुलिस ने उसे एनकाउंटर में मार गिराया.

 

एक के बाद एक हत्यारों को मारा जा रहा था लेकिन विकास अभी भी फरार था. घटना के 7वें दिन यानी 9 जुलाई को विकास कई राज्य घूमते हुए महाकाल के दरबार में उज्जैन पहुंच गया. चूहे- बिल्ली की दौड़ खत्म हुई और 9 जुलाई को सुबह 8-9 के बीच महाकाल के चौखट से विकास को गिरफ्तार किया गया लेकिन सवाल भी खड़ा हुआ की गिरफ्तारी या सरेंडर ?

उज्जैन में एमपी पुलिस ने यूपी पुलिस को सूचना दी शाम 7 बजे के करीब यूपी STF की टीम उज्जैन पहुंची और सड़क के रास्ते विकास को लेकर कानपुर के लिये रवाना हो गई. पूरे देश को विकास के कानपुर पहुंचने का इन्तज़ार था. 10 जुलाई को सुबह 6 बजकर 10 मिनट के करीब जब विकास को लेकर टीम कानपुर में दाखिल हुई. कानपुर से पहले पड़ने वाले बारा टोल नाके पर मीडिया और बाकी गाड़ियों के रोक चेकिंग और सुरक्षा की नजर से रोक दिया गया. इसके करीब 20 मिनट बाद खबर आई कि विकास के एनकाउंटर की खबर आई l

 

विकास दुबे के मरने के बाद भी उसके गांव में दहशत का माहौल था l गांव वालों में विश्वास कायम करने के लिए पुलिस लगातार गांव में गश्त कर रही थी l

 

विकास के एनकाउंटर को लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो रहे थे जैसे – क्या भारत में मीडिया और न्यायलय का काम खत्म हो चुका है l उन 8 शहीदों की मौत का गम सब को था और दूसरों से कहीं ज्यादा गम उत्तर प्रदेश पुलिस को होगा लेकिन दंड देने का अधिकार किसे है पुलिस को या कोर्ट को ? कुख्यात अपराधी विकास दुबे की मौत से किसी को हमदर्दी नहीं है ना होनी चाहिए ..लेकिन बात ये भी है की कई लोगों का पजामा उतर जाता अगर विकास का मुँह खुल जाता शायद इसीलिए चुपचाप उसका मुँह बंद कर दिया गया | उसे गोली मारने से सिर्फ बुरा खत्म हुआ है.. बुराई नहीं खत्म हुई है |

ये आज तक पता नहीं चल पाया जिनका उसे संरक्षण प्राप्त था | उज्जैन से चली सफ़ेद सफारी कानपुर आते ही सफ़ेद TUV300 में कैसे बदल जाती है ये भी आज तक पता नहीं चल पाया ना हीं ये पता चला की 24 घंटे पहले सरेंडर करने वाला एक पैर में स्टील होने के बाद कमांडो ट्रेनिंग पायी stf से कैसे हथियार छीन कर भागने लगता है |

मुँह पर का मास्क नहीं हटता .. कपड़ो पर कीचड़ नहीं लगता.. मीडिया को बैरिकेडिंग लगा कर रोका जाता है और अंत में क्या होता है ये आज साल भर बाद भी हम सब को पता है |

 

लेकिन एक दूसरा पहलू यह भी है कि एनकाउंटर करने वाली टीम का लोगों ने फूलमाला पहना कर और लड्डू खिलाकर स्वागत किया था l विकास के अलावा उसके पांच और साथी पुलिस के हाथों परलोक सिधार गए हैं l लोगों के मन में यह भाव था कि आखिरकार यूपी पुलिस ने अपने आठ साथियों की शहादत का बदला ले लिया l और शायद सिद्धांतों और नैतिकता को अगर अलग रख दिया जाये तो सहादत के बदले विकास दुबे का एनकाउंटर सही था l लेकिन इसका ये बिलकुल मतलब नहीं की पुलिसिया गोली को सड़क पर इंसाफ करने का अधिकार मिल गया हो l

 

 

 

रिपोर्ट – वैभव

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