मुंगेर किले का गेट ढहा, बाल-बाल बचे लोग — सवालों के घेरे में प्रशासनिक लापरवाही

Patna Desk

मुंगेर का ऐतिहासिक किला, जो सदियों से इतिहास और विरासत का जीवंत प्रतीक रहा है, अब जर्जर हालत में टूटने की कगार पर पहुंच चुका है। रविवार को किले के उत्तरी द्वार का ऊपरी हिस्सा अचानक भरभराकर गिर पड़ा, लेकिन सौभाग्य से वहां से गुजर रहे लोग किसी बड़ी दुर्घटना से बच गए।

इतिहास की अनसुनी पुकार

ये वही मुंगेर का किला है जिसकी नींव महाभारत काल से लेकर मीर कासिम के शासनकाल तक की कहानियों से जुड़ी है। कभी सत्ता और रणनीति का केंद्र रहा यह स्थल आज भी प्रशासनिक भवनों, न्यायालय, जेल और आम रिहायशी इलाकों के रूप में जीवित है। लेकिन अब यह विरासत उपेक्षा और टूट-फूट का शिकार बन चुकी है।

मरम्मत की मंजूरी, पर काम की रफ्तार सुस्त

बताया जा रहा है कि 1934 के भूकंप के बाद इसका जीर्णोद्धार हुआ था, लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह संरचना फिर से उपेक्षित होती चली गई। हालिया दिनों में सड़क निर्माण के चलते भारी वाहनों की आवाजाही ने द्वार की स्थिति और खराब कर दी थी। सरकार की ओर से मरम्मत के लिए राशि स्वीकृत तो की गई थी, लेकिन निर्माण कार्य की गति इतनी धीमी रही कि हादसा हो गया।

प्रशासन जागा… पर देर से

एसडीओ मुंगेर सदर का कहना है कि सोमवार से मरम्मत कार्य शुरू किया जाएगा, मगर सवाल यह है कि इतिहास के गिरने का इंतजार क्यों किया गया? क्या संरक्षण की पहल घटनाओं के बाद ही होती है?

नागरिकों की अपील — “ये किला पहचान है, इसे बचाना फर्ज़”

स्थानीय लोगों का कहना है कि मुंगेर का किला सिर्फ एक धरोहर नहीं, बल्कि शहर की आत्मा है। इसे बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की भी है।

Share This Article