आंदोलन के नायक जयप्रकाश के लिए राष्टकवि दिनकर ने लिखी थी ये पंक्तियां, पढ़ें कविता

Rajan Singh

NEWS PR DESK- आंदोलन एक ऐसा शब्द, जिससे सरकारें घबराती भी रहीं और कुचलने से कतराई भी नहीं. बिहार को अंदोलन की भूमि के नाम से जाना जाता है. वजह एक मात्र जेपी है. आजदी से पूर्व और आजादी के बाद भी जेपी ने कई आंदोलनों को नेतृत्व किया था. जेपी कभी देश को आजाद कराने के लिए जेल गए, तो कभी उन्हें सत्ता के खिलाफ जाकर आंदोलन चलाने के लिए जेल जाना पड़ा. जेपी ने जब सत्ता के खिलाफ अंदोलन की शुरूआत की थी, तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने जेपी के लिए एक कविता लिखी थी, जिसे लोग आज भी दिलचस्पी से पढ़ते हैं.

1946 में जयप्रकाश नारायण ने जब तत्कालीन सरकार के खिलाफ आंदोलन की बिगुल बजाई थी. तब जनता का आह्वान करने के लिए रामधारी सिंह दिनकर ने इस कविता को दोहराया था.

‘सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है‘

जनता? हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली.

‘जनता हां, लंबी-बड़ी जीभ की वही कसम
जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है
सो ठीक, मगर, आखिर इस पर जनमत क्या है
है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है’

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