लॉकडाउन में विलुप्त हो रहे समुदाय के सामने खुद को बनाए रखने की चुनौती, भुखमरी की जिंदगी जी रहे हैं 400 लोग

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By PR Desk

अजित सोनी

गुमलाः लॉकडाउन मे कोई काम नहीं मिलने के कारण राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जानेवाले कोरवा समुदाय के 50 परिवारों के सामने खुद को बचाए रखने की चुनौती उत्पन्न हो गई है। हालत यह है कि समुदाय के 400 लोगों के पास न तो खाने के लिए राशन है और न ही कोई काम, जिससे वह जिंदगी गुजर बसर कर सकें।

मामला जिला मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर स्थित तेतर दीपा और केउना गांव है। जहाँ लगभग कोरवा जनजाति समुदाय के दो गांव मिला कर  लगभग 50 परिवार रहते हैं। जिसमें कुल संख्या लगभग 400 के आसपास है। लेकिन चार माह से इस समुदाय के लोगों के बीच न तो कोई काम है, न ही खाने के लिए राशन। नतीजा इस समुदाय के सामने भुखमरी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। आदिम जनजाति के लोग खाने की जुगाड़ में 10 किमी की दूरी तय कर भूख मिटाने के लिए राशन जुगार करते है। अदिमजनजाति की माने तो लोगो ने बताया है कि इससे पहले 5 केजी का राशन प्रशासन के द्वारा मिला था उसके बाद से नही मिला है। लॉकडाउन में आर्थिक हालत खराब हो गयी है। खाने की जुगार में 10 किमी दूर चल कर जाना पड़ता है। रोजगार भी नही चल रहा है। और नही कहि काम कर रहे है जिससे भुखमरी की समस्या है।

नहीं मिला योजनाओं का लाभ

बता दें कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए सरकार ने मुखियाओं को निर्देश भी दिया है। साथ गरीब लोगों को सहायता के लिए हर सुविधा भी दिये जाने की बात कही है।  लेकिन आज भी विलुप्त हो रही आदिम जनजाति परिवारों को लाभ नहीं मिला। हम डाकिया योजना और  अन्य योजना की बात करें तो योजना की सुरुआत सिर्फ कागज पर दम तोड़ती नजर आ रही है। ना ही बिजली है और न ही पीने का पानी है।डाकिया योजना के तहत घर तक राशन पहुंचाया जाता है। राशन पहुचने की बात डीलर से किया भी जाता है। तो राशन के जगह में डीलर से धमकी दी जाती है। सोलर पैनल के द्वारा पीने का पानी उपलब्ध है। लेकिन सूर्य की रोशनी रहने पर पानी मिलता है। तेज रोशनी का इंतजार करना पड़ता है। जिससे काफी लोगों में परेशानी है। इसके साथ कई ऐसे अन्य मूलभूत सुविधा भी जहाँ इन लोगो के बीच नही पहुंचा है। लोगो ने यह भी बताया कि सुविधा के नाम पर अधिकारी आते है और खानापूर्ति किया जाता है। सही मायने में मदद कोसों दूर है।

संस्था ने की मदद

इधर मिशन बदलाव के कार्यकर्ता को जानकारी हुई कि आदिमजंजाति के लोगो को भूखे मरने की जानकारी  संरक्षक रितेश मिंज  को हुई तो उन्होंने आदिमजंजाति परिवार के लोगो के लिए एक महीना का खाने का सामान की व्यवस्था किया लेकिन भी इस पर प्रशासन की आंख नही खुली वही मिशन बदलाव के संरक्षक ने  कहा कि फिलहाल जरूरी की जो भी खाद्य सामग्री थी दिया गया है। और आगे भी दिया जायेगा । जिसके बाद विलुप्त हो रही आदिम जनजाति के बीच 50 परिवारों में खुशी देखने को मिली। इस राहत पैकेट में 25 केजी चावल आटा दाल तेल साबुन नमक सहित कई अन्य खाद्य सामग्री सहित दैनिक इस्तेमाल का सामान थे। इस दौरान लोगों ने अपनी रोज मर्रा की परेशानी से भी मिशन बदलाव के कार्यकर्ता को रूबरू कराया साथ ही मिशन बदलाव के पूरे टीम को आदिम जनजाति समुदाय के लोगो ने मदद के लिए पहुंची टीम को धन्यवाद दिया है। वही मदद से पूरे गांव के लोगो में खुशी है।

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