NEWSPR DESK- हमें याद है वो दौर जब मैं शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से मिलने लगभग हर सप्ताह डुमरांव से वाराणसी चला जाया करता था। उन्होंने जो स्नेह हमें दिया उसे आज भी भूल नहीं पाया हूं।
अपने परिवार की तरह मानने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने कभी ये एहसास नहीं होने दिया की मैं एक हिंदू परिवार से आता हूं और वो एक मुस्लिम हैं। डुमरांव स्टेट के मुलाजिम पैगंबर बख्श के यहां।
21 मार्च, 1916 को एक मुस्लिम परिवार में बालक कमरुद्दीन का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर विश्व प्रसिद्ध भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बन गये। बांके बिहारी मंदिर में कमरुद्दीन को उनके अब्बा ने पहली बार शहनाई को पकड़ायी, आगे चलकर वही कमरुद्दीन शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के रुप में शहनाई वादन कर पूरी दुनिया को मुरीद बना दिया।
एक समय ऐसा आया जब अपनी जन्मस्थली डुमरांव से कर्मस्थली वाराणसी रवाना हो गए और वहां जाकर पांच समय के नमाजी बिस्मिल्लाह खां ने वाराणसी के बालाजी मंदिर में सुबह की बेला में शहनाई वादन जीवनपर्यंत करते रहे। वैसे बाबा को वाराणसी और गंगा से बेहद प्यार था तो डुमरांव में पैदा होने वाले कंडा (सरकंडा) जिससे शहनाई का सुर बनता है तथा अपने पैतृक भूमि से भी उतना ही लगाव रखते थे।
बिस्मिल्लाह ख़ां की शहनाई में एक ठुमरी अंदाज़ भरा हुआ था, जिसे मैं अच्छी तरह समझता था। समझने के पीछे यह भी वजह थी कि वो अक्सर संगीत की बारिकियों के बारे में मुझे समझाया करते थे। एकबार जब हमने जुगलबंदी के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा संगीत में जुगलबंदी एक दूसरे को सहारा और निवाला देने की तरह होती है, जिससे सामने वाले की रूह खुलती है।
एक बार रघु राय ने भी कहा था कि, “दुनिया में तीन जोड़े ऐसे हैं जिन्होंने कमाल की जुगलबंदी की है…एक तो हैं विलायत ख़ां और बिस्मिल्लाह ख़ां, दूसरे रविशंकर और अली अकबर ख़ां और तीसरे, हरि प्रसाद चौरसिया और शिवकुमार शर्मा लेकिन विलायत ख़ां और बिस्मिल्लाह ख़ां में जो संवाद था और जैसे वो एक दूसरे की संगीत की एक-एक बारीकियों पर कुर्बान होते थे, वो देखने लायक चीज़ हुआ करती थी।”
उस्ताद “ताउम्र अपने कपड़े ख़ुद धोते थे और बिना प्रेस किए हुए कपड़े ही पहनते थे। रिक्शे की सवारी उन्हें बहुत अच्छी लगती थी। बॉलीवुड में रहकर भी शराब को कभी हाथ नहीं लगाया। तभी तो राजदरबार के नौबतखाने तक सिमटी रहने वाली शहनाई पर शास्त्रीय संगीत बजाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां एक प्रख्यात भारतीय शहनाई वादक थे जिन्होंने शहनाई को भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर भी एक विशिष्ट पहचान दिलाने में अपना जीवन समर्पित किया।
ये वो शख्स थे जिन्होंने संगीत के इस पावन उपकरण शहनाई को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। बिस्मिल्लाह ख़ां जी को संगीत के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए वर्ष 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था।
उस्ताद के साथ गुजरे कल को याद कर लगता है कि वास्तव में वैसे शहनाई के संत अब कोई नहीं आएगा। शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री डॉ.सोमा घोष जो, उस्ताद की दत्तक पुत्री कही जाती हैं। उनसे मेरी अक्सर बातें हुआ करती हैं हम दोनों बाबा के बारे में बातें करते-करते मायूस हो जाते हैं। अतीत में खो जाते हैं कि वो भी क्या दिन थे। बाबा के पास पहुंचना और घंटों शहनाई को सामने बैठकर सुनना, देश-विदेश की रोचक बातों को सुनना ही तो था कि एकदिन बाबा पर पुस्तक “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां”की रचना कर डाली।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव…