बिहार में बुनियादी ढांचे के विकास को नई दिशा मिलने जा रही है। पहली बार राज्य में हाइब्रिड एनयूटी मॉडल (HAM) पर सड़क परियोजना का काम शुरू होने जा रहा है। दीघा-शेरपुर-कोईलवर गंगा पथ (मरीन ड्राइव एक्सटेंशन) के निर्माण का जिम्मा विश्वा समुद्रा एजेंसी को सौंपा गया है। एजेंसी ने यह काम 6498 करोड़ रुपये की लागत में करने पर सहमति दी है।
टेंडर प्रक्रिया में अदाणी को मात
इस परियोजना के लिए कुल 7 एजेंसियों ने टेंडर दाखिल किए थे। इनमें से 5 अयोग्य घोषित कर दी गईं। अदाणी इंटरप्राइजेज लिमिटेड ने भी दावेदारी की थी, लेकिन उनकी बोली 6858 करोड़ रुपये की थी, जो अधिक होने के कारण चयनित नहीं हो पाई।
35.21 किमी लंबा कॉरिडोर
परियोजना के तहत 35.21 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा। इसमें 18 किलोमीटर हिस्सा गंगा नदी पर एलिवेटेड होगा, जबकि 17.65 किलोमीटर सड़क जमीन पर बनेगी। इस काम को 4 साल में पूरा करने का लक्ष्य है। निर्माण के बाद अगले 15 साल तक इसकी देखरेख भी यही एजेंसी करेगी। यह कॉरिडोर मौजूदा दीदारगंज-दीघा गंगा पथ का विस्तार होगा, जो पूर्व में जेपी गंगा सेतु से और पश्चिम में कोईलवर पुल से जुड़ जाएगा।
आगे की योजनाएं भी तैयार
सड़क निर्माण विभाग ने दीदारगंज-फतुहा-बख्तियारपुर-अथमलगोला मार्ग को फोरलेन बनाने की योजना भी बना ली है। मुख्यमंत्री पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि जेपी गंगा पथ को पूर्व में मोकामा और पश्चिम में बक्सर तक विस्तारित किया जाएगा।
कम होगी दूरी, बढ़ेगी कनेक्टिविटी
गंगा पथ विस्तार के बाद उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच की दूरी काफी घट जाएगी। दीघा सेतु, शेरपुर-दिघवारा सेतु, कोईलवर सेतु, वीर कुंवर सिंह सेतु, जनेश्वर मिश्र सेतु और बक्सर सेतु आपस में जुड़ जाएंगे। पटना से बक्सर तक यात्रा 100-120 किमी/घंटा की रफ्तार से पूरी हो सकेगी। इस मार्ग से बलिया, गाजीपुर, आज़मगढ़ और गोरखपुर तक पहुंच भी आसान होगी। वहीं बक्सर से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के जरिए दिल्ली तक तेज़ कनेक्टिविटी मिलेगी। साथ ही दानापुर और शाहपुर बाजार भी सीधे जुड़ जाएंगे।
कैसे काम करेगा हाइब्रिड एनयूटी मॉडल?
इस परियोजना को हाइब्रिड एनयूटी मॉडल पर बनाया जाएगा। निर्माण अवधि के दौरान राज्य सरकार लागत का केवल 40% हिस्सा देगी, जबकि एजेंसी 60% राशि खुद निवेश करेगी। सड़क शुरू होने के बाद अगले 15 सालों में सरकार ब्याज समेत शेष राशि एजेंसी को लौटाएगी। इस दौरान टोल वसूली का अधिकार एजेंसी के पास रहेगा। सरकार का मानना है कि इस मॉडल से राज्य के बजट पर बोझ कम होगा और बाकी बची राशि अन्य परियोजनाओं में इस्तेमाल की जा सकेगी