रेलवे जमीन म्यूटेशन में लापरवाही: अब राज्य सरकार और रेलवे मिलकर उठाएंगे ठोस कदम

Patna Desk

भारतीय रेलवे, जो देश में रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे अधिक जमीन का स्वामित्व रखता है, जमीन के म्यूटेशन यानी दाखिल-खारिज की प्रक्रिया में गंभीर सुस्ती दिखा रहा है। वर्ष 1955-56 से अब तक जिन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण हुआ है, उनके दस्तावेज न तो सहेज कर रखे गए हैं और न ही पूरी तरह से राजस्व विभाग को उपलब्ध कराए जा सके हैं।

इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने रेलवे के साथ मिलकर एक विशेष समन्वय तंत्र (कोऑर्डिनेशन सिस्टम) बनाने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य लंबित पड़े म्यूटेशन कार्य को जल्द से जल्द पूरा करना है।

बिहार के आठ मंडलों में बनाए जाएंगे समन्वय अधिकारी
राज्य में रेलवे के आठ मंडल — दानापुर, समस्तीपुर, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, कटिहार, हाजीपुर, दरभंगा और सहरसा — में अब नामित अधिकारी म्यूटेशन कार्य की निगरानी और प्रक्रिया में तेजी लाने की जिम्मेदारी संभालेंगे।

हाल ही में राजस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक में खुलासा हुआ कि रेलवे के पास जमीन के स्वामित्व से संबंधित पुख्ता दस्तावेजों की भारी कमी है। उदाहरण के तौर पर, पटना के दानापुर स्थित 15 एकड़ भूमि के अधिग्रहण से जुड़े दस्तावेज अधूरे पाए गए, जबकि इस क्षेत्र में रेलवे के 78 प्लॉट मौजूद हैं।

राजस्व विभाग की सख्त हिदायत
राजस्व विभाग ने रेलवे अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अंचलाधिकारी, अपर समाहर्ता और जिला भू-अर्जन पदाधिकारी से समन्वय बनाकर सभी जरूरी दस्तावेज जल्द उपलब्ध कराएं और उनकी प्रतियां विभागीय मुख्यालय को भी सौंपें। साथ ही प्रत्येक रेल मंडल में एक-एक समन्वय अधिकारी की तैनाती का भी आदेश जारी किया गया है।

विशेष ई-मेल आईडी और नया समन्वय तंत्र
सरकारी जमीनों के म्यूटेशन के लिए पहले से एक स्वतंत्र पोर्टल चालू है, लेकिन रेलवे की प्रक्रिया को सरल और तेज करने के लिए अब विशेष ई-मेल आईडी बनाई जा रही है। इसके जरिए दस्तावेजों का आदान-प्रदान और संवाद आसान होगा।

बीते दो दशकों की परियोजनाएं अभी भी अधूरी
बीते 20 वर्षों में जिन परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहित की गई, उनमें म्यूटेशन की प्रक्रिया अधूरी है। इनमें नेउरा-दनियांवा रेल लाइन, इस्लामपुर-नटेसर परियोजना, राजगीर-तिलैया रेल विस्तार, सदिसोपुर-जट डुमरी, अररिया-गलगलिया, खगड़िया-अलौली, हसनपुर-कुशेश्वरस्थान, दरभंगा-कुशेश्वरस्थान, हाजीपुर-सुगौली, मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी और महाराजगंज-मशरक जैसे महत्वपूर्ण रेलखंड शामिल हैं।

लापरवाही से बढ़ सकती हैं कानूनी चुनौतियां
रेलवे द्वारा अधिग्रहीत जमीनों के अभिलेखों की लापरवाही से जहां इन परियोजनाओं की रफ्तार प्रभावित हो रही है, वहीं भविष्य में कानूनी विवादों की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। सार्वजनिक धन का उपयोग होने के बावजूद यदि जमीन का स्वामित्व स्पष्ट नहीं होता, तो यह न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है।

हालांकि, राज्य सरकार और रेलवे के बीच नए समन्वय प्रयासों से उम्मीद की जा रही है कि अब यह गंभीर समस्या दूर होगी और विकास परियोजनाओं को समय पर पूरा किया जा सकेगा।

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