दीपावली की तैयारियों के बीच नालंदा के कुम्हार दिन-रात मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हैं। लेकिन चाइनीज़ लाइट्स और इलेक्ट्रिक सजावट की बढ़ती लोकप्रियता से परंपरागत दीयों का कारोबार चुनौतियों का सामना कर रहा है।कुम्हार पप्पू पंडित ने बताया, “बाजार दो हिस्सों में बंट गया है। दीयों की मांग घट रही है, लोग चाइनीज़ लाइट्स को पसंद कर रहे हैं।
हमारी बिक्री पर असर पड़ा है।”कुम्हार राजू पंडित ने कहा, “दीपावली में लगभग 10 हजार दीये बिक जाते हैं, लेकिन पहले की अपेक्षा बाजार की स्थिति बदली है। मिट्टी का दीया शुद्धता का प्रतीक है, इसके बिना दीपावली पूरी नहीं हो सकती।”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वकर्मा योजना के बारे में पप्पू पंडित ने कहा, “यह योजना हमारे लिए एक अच्छी पहल है, लेकिन अभी हमने आवेदन नहीं किया है। अगर हमें लाभ मिला, तो काम में राहत मिल सकती है।”कुम्हारों की रोजाना कमाई 300 से 500 रुपये के बीच ही रहती है। त्योहार के बाद काम कम हो जाता है, जिससे उन्हें मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ता है।